लाठी हो तो हटवारा की! मशहूर, मजबूत और सुदंर ये लाठियां कैसे बनती हैं?
करौली. ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’, यह कहावत तो आपने सुनी होगी. लाठी भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है. यह लाठी बुढ़ापे में किसी के लिए सहारा होती है तो किसी के लिए हथियार के रूप में काम करती है. ग्रामीण इलाकों में आज भी लाठी के दम पर किसी को भी झुका दिया जाता है. इसी बांस की लाठी के लिए करौली का हटवारा बाजार पूरी दुनिया में जाना जाता है. इस बाजार से कई लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है.
करौली के हटवारा बाजार में लाठी का कारोबार 300 साल से भी ज्यादा समय से चलता आ रहा है. यहां पर लाठी के कारोबार से मुस्लिम परिवार ट्रेड इंटरसेप्टर जुड़े हुए हैं. लाठी व्यापारी नजरूद्दीन ने बताया कि करौली की बांस की मजबूत लाठियां और डंडे प्रदेशभर सहित एमपी, यूपी और देश के कई हिस्सों में जाते हैं. उनका ट्रेड इंटरसेप्टर कहना है कि बांस का कारोबार इस बाजार में बहुत समय से चलता आ रहा है. यह हमारा पुश्तैनी धंधा है, जो 7 पीढ़ियों से चलता आ रहा है. आज ट्रेड इंटरसेप्टर भी बांस के कारोबार से 6 परिवारों के 100 से ज्यादा लोगों को हटवारा बाजार में रोजगार मिल रहा है.
सस्ती, सुंदर और टिकाऊ हैं ये लाठियां
बांस की लाठी बनाने वाले कारीगर मोइन का कहना है कि करौली की लाठियां मजबूत और खूबसूरत होती हैं. यहां बनने वाली तार की लाठियां आज भी लोगों का मन मोह लेती हैं. सबसे ट्रेड इंटरसेप्टर खास बात यह है कि इस लाठी की उम्र 10 साल से भी ज्यादा होती है. हटवारा बाजार के कारीगरों और व्यापारियों ने बताया कि सबसे ज्यादा व्यापार कैला देवी मेले और अन्य बड़े मेलों में मिलता है. यह बांस कैला देवी मेले के जरिए ऑल इंडिया में जाता है. करौली के हटवारा बाजार में ₹20 से लेकर ₹500 तक के बांस मिलते हैं.
कैसे बनती हैं ये लाठियां?
मोईन ने बताया कि लाठी बनाने के लिए सबसे खास किस्म के बांस का उपयोग किया जाता है. इस बाजार में लाठी ट्रेड इंटरसेप्टर बनाने के लिए कच्चा माल राजस्थान के प्रतापगढ़ और एमपी से आता है. लाठी बनाने के लिए सबसे पहले कच्चे बांस को भट्टी में पकाया जाता है. भट्टी में पकने के बाद यह कच्चा बांस नरम हो जाता है. फिर इस बांस को दबाव के साथ सीधा किया जाता है और लाठी का आकार दिया जाता है. इस लाठी को तेल और मसाला लगाया जाता है. इसके बाद आग की धीमी लपटों से बांस पर डिजाइन बनाई जाती है.
Tripper Navigation No Longer Standard On Royal Enfield Himalayan & उल्का
The Tripper Navigation was an useful feature that shows turn-by-turn instructions
Royal Enfield’s unique Tripper Navigation should now be bought as a separate accessory
The Tripper Navigation , which was an unique tech from Royal Enfield , that offered turn-by-turn navigation instructions to riders is no longer a standard fitment on the brand’s Meteor 350 cruiser and the Himalayan adventure bike .
The Chennai-based retro bike maker has removed it owing to the global chip shortage that’s continuing to haunt manufacturers across the globe .
The Tripper Navigation was Royal Enfield’s answer to the connected tech that’s becoming the trend now with almost all car and bike manufacturers starting to offer it . TVS has also taken it to the next level by adding more than 60 featuring including Apple Siri-like voice commands and audio feedback .
Though Royal Enfield’s Tripper Navigation is basic unlike the others , it’s still highly intuitive . वास्तव में, Royal Enfield was one of the first to offer a colour display even though it looked retro on a small round dial .
By connecting to the users ’ mobiles via Bluetooth , the system offers turn-by-turn navigation without the need to dock their phones on to the handlebar enabling them to save their mobile batteries on the move . It also sports a few other basic features like a digital clock .
The Himalayan too received a price hike recently
Though Tripper Navigation is no longer a standard fitment , buyers can still get it as an optional accessory through the brand’s Make-It-Yours ( MiY ) configurator . वास्तव में, it was already an optional accessory on the Classic 350 and the recently launched Scram 411.
With the deletion of the Tripper Navigation unit , the base price of both the Meteor 350 and Himalayan has come down by Rs . 5000/-. But this drop is nothing to make merry about as just recently both the bikes got a price hike .
Royal Enfield has also hiked the booking amount for its products from Rs . 10,000/- से रु. 20,000/- when done through the MiY configurator . परंतु, it still remains the same Rs . 10,000/- for the regular non-MiY models .
Road Safety Campaign Raipur: सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए खरीदेंगे 10 नए इंटरसेप्टर और सात हाईस्पीड रेडार गन
रोड सेफ्टी अभियान को लेकर नईदुनिया ने ट्रैफिक के एआइजी संजय शर्मा से बातचीत की। यातायात विभाग ने सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए 10 नए इंटरसेप्टर और सात हाईस्पीड रेडार गन खरीदने का निर्णय लिया है। लोगों को जागरूक करने के लिए शार्ट फिल्म बनाई जा रही है।
रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। Road Safety Campaign Raipur 2022: सड़कों पर हादसों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। इस पर लगाम लगाने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। यातायात विभाग ने सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए 10 नए इंटरसेप्टर और सात हाईस्पीड रेडार गन खरीदने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही कई ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि सड़क दुर्घटना कम हो सके। साथ ही जन-जागरूकता व इंटरनेट मीडिया पर भी यातायात विभाग के जरिए लोगों तक पहुंच बनाई जाएगी। लोगों को जागरूक करने के लिए शार्ट फिल्म बनाई जा रही है, जो ट्रेड इंटरसेप्टर कि जल्द ही लांच की जाएगी।
इसे लेकर नईदुनिया ने ट्रैफिक के एआइजी संजय शर्मा से बातचीत की, जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं-'
सवाल: सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए भविष्य में किस तरह की नई सुविधाएं शामिल की जा रही हैं?
जवाब: इसके लिए 10 नए इंटरसेप्टर वाहन खरीदे जा रहे हैं, जो कि नेशनल हाइवे में 35 किमी के दायरे में रहेंगे और दुर्घटना की स्थिति को नियंत्रित करने के साथ लोगों की मदद करेंगे। इसके अलावा सात हाई स्पीड रेडार गन खरीदे जा रहे हैं, जिससे ओवर स्पीड वाहनों पर कार्रवाई की जा सकेगी। साथ ही 150 ब्रेथ एनेलाइजर खरीदे जा रहे हैं, जिससे शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर कार्रवाई की जाएगी।
सवाल: लोगों को जागरूक करने के लिए क्या प्रयास किया जा रहा है?
जवाब: लोगों को जागरूक करने के लिए शार्ट फिल्म बनाई जा रही है, जो कि जल्द ही लांच की जाएगी। यह फिल्म हल्बी, गोंडी, सरगुजिया सहित छत्तीसगढ़ में प्रचलित तमाम भाषाओं में होगी और नीचे हिंदी में सबटाइटल भी होगा। इसके जरिए लोगों को जागरूक किया जाएगा।
सवाल: जनभागीदारी के लिए क्या विशेष कदम ट्रेड इंटरसेप्टर उठाए जा रहे हैं?
जवाब: जनभागीदारी के लिए एनसीसी और स्काउट गाइड के बच्चों को ट्रेनिंग दी जा रही है। साथ ही पीक आवर्स में विभिन्ना क्षेत्रों में इनकी सेवाएं भी ली जा रही हैं। इसके अलावा कुछ एनजीओ भी हैं, जिन्होंने आवेदन किया है। उन्हें भी शामिल किया जाएगा और लोगों को जागरूक करने के साथ ही यातायात व्यवस्था बनाने में मदद ली जाएगी।
सवाल: सिपाहियों की कमी दूर करने के लिए क्या योजना है?
जवाब: हमारे पास वर्तमान में 1,450 सिपाही हैं। इनमें गार्ड सहित अन्य कई वर्ग के ट्रेड इंटरसेप्टर कर्मचारी शामिल हैं। इनकी भर्ती प्रक्रिया में तो समय लगता है, लेकिन इनकी कमी पूरी करने के लिए एनजीओ सहित अन्य संगठनों की मदद ली जा रही है, जो कि स्वेच्छा से कार्य करने को तैयार हैं।
सवाल: सड़कों की खामियां दूर करने के लिए क्या व्यवस्था बनाई जा रही है?
जवाब: इसके लिए जिन जगहों पर ज्यादा दुर्घटनाएं और मौतें होती हैं, वहां सड़क व इंजीनियरिंग विशेषज्ञों की मदद ली जाएगी और उनके बजाए अनुसार आवश्यक सुधार करवाया जाएगा। इसके लिए नगरीय प्रशासन से अनुबंधित इंजीनियर्स सहित अन्य विभागों की भी मदद ली जाएगी।
सवाल: समय पर इलाज मिले, इसके लिए क्या बंदोबस्त कर रहे हैं?
जवाब: किसी भी सड़क दुर्घटना में एक घंटे को गोल्डन आवर माना जाता है। इस दरमियान मदद मिल जाए तो जान बचाई जा सकती है। वर्तमान में सात ट्रामा सेंटर्स हैं। इसके अलावा 12 नए ट्रामा स्टेबलाइजर सेंटर खोले जाएंगे। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा सहमति दे दी गई है और निर्माण कार्य भी शुरू कर लिया गया है।
सवाल: तकनीक में किस प्रकार का सुधार करा रहे हैं?
जवाब: हम एक वेबसाइट लांच कर रहे हैं, जिसमें लोग खुद ही अपना आकलन कर सकेंगे कि वे यातायात नियमों को कितना बेहतर जानते हैं। इसके अलावा लाइसेंस देने से पहले डेढ़ घंटे के लिए एक यातायात सुरक्षा का वीडियो भी लोगों को दिखाने की योजना है। इसके बाद उनका टेस्ट लिया जाएगा।
सवाल: चालानी कार्रवाई में किस प्रकार की सख्ती बरती जाएगी?
जवाब: चालानी कार्रवाई के लिए इस बार 20 प्रतिशत बढ़ोतरी करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा दूसरे राज्यों से आने वाले वाहनों के लिए एक वेब रेंज डेवलप किया जा रहा है, जिससे वाहन आते ही उनकी जानकारी मिलेगी और यातायात नियम तोड़ने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी।
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