वो विधेयक, जिन्हें आज राज्यसभा में किया जाएगा पेश, जानें किसान क्यों कर रहे विरोध?
किसानों से जुड़े बिल लोकसभा में पास हो गए हैं. अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाना है. किसान संगठन इसके खिलाफ सड़कों पर हैं. विपक्षी दल भी इन बिलों का विरोध कर रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार इसे किसानों के लिए फायदेमंद बता रही है.
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 20 सितंबर 2020,
- (अपडेटेड 20 सितंबर 2020, 9:38 AM IST)
- किसानों से जुड़े बिल राज्यसभा में होंगे पेश
- किसान संगठन कर रहे हैं इन बिलों का विरोध
- सरकार का ये कदम किसानों कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति को लग रहा विरोधी
केंद्र सरकार के खेती-किसानी से जुड़े विधेयकों के खिलाफ किसान लामबंद हैं. लोकसभा में बिल पास हो गए हैं. अब इसे उच्च सदन यानी राज्यसभा में पेश किया जाना है. किसान संगठन इसके खिलाफ सड़कों पर हैं. विपक्षी दल भी इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार इसे किसानों के लिए फायदेमंद बता रही है. विधेयकों के विरोध में एनडीए सरकार की सहयोगी पार्टी अकाली दल की नेता और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल अपने पद से इस्तीफा दे चुकी हैं. मसला ये है कि किसानों की आमदनी बढ़ाने का वादा करने वाली केंद्र सरकार के इन विधेयकों का विरोध क्यों हो रहा है? क्यों किसानों को लगता है सरकार का ये कदम किसान विरोधी है? आइए जानते हैं.
1. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) बिल
सरकार का कहना था कि कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है. अब यह सचमुच वन नेशन, वन मार्केट होगा. किसान अपना प्रोडक्ट खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकते हैं. इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी.
मगर किसान इसमें अपना नुकसान देख रहे हैं. किसानों को सबसे बड़ा डर मंडी एक्ट के प्रभाव को सीमित करने वाले विधेयक कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) को लेकर है. इसके जरिए राज्यों के मंडी एक्ट को केवल कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति मंडी परिसर तक ही सीमित कर दिया गया है. यानी अब कहीं पर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकेगी. बस फर्क इतना होगा कि मंडी कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति में खरीद-बिक्री पर मंडी शुल्क लगेगा, जबकि बाहर शुल्क से छूट होगी.
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज का मानना है कि सरकार के इन विधेयकों से मंडी बोर्ड (मंडी व्यवस्था) खत्म हो जाएगी. उनकी दलील है कि केंद्र सरकार के इन तीनों विधेयकों में बहुत सी खामिया हैं, जिससे किसानों को नुकसान होगा, जबकि कॉरपोरेट जगत और बिचौलिये फायदे में रहेंगे.
राहुल राज का कहना है कि फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) विधेयकों में वन नेशन-वन मार्केट की बात कही जा रही है. लेकिन इसका असली मकसद कृषि उपज विपणन समितियों (APMC) के एकाधिकार को खत्म करना और सभी को कृषि प्रोडक्ट खरीदने-बेचने की इजाजत देना है. राहुल राज के मुताबिक मंडी व्यवस्था खत्म होने से व्यापारियों की मनमानी और बढ़ जाएगी. वो औने-पौने दाम पर किसानों की फसल खरीदेंगे, क्योंकि किसानों के पास कोई विकल्प नहीं होगा.
राहुल राज कहते हैं कि इस कानून की सबसे बड़ी खामी है कि इसमें व्यापारी या कंपनी और किसान के बीच विवाद होने पर पहले एसडीएम और बाद में जिलाधिकारी मामले को सुलझाएंगे. इसमें कोर्ट जाने की व्यवस्था नहीं है, अधिकारी सरकारी नुमाइंदा होता है. उससे कोई किसान न्याय की कितनी उम्मीद कर सकता है? सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की कोई गारंटी नहीं दे रही है. हमें वन नेशन, वन रेट चाहिए.
राहुल राज मध्य प्रदेश में मूंग की मौजूदा कीमत को एमएसपी और मंडी व्यवस्था खत्म होने पर आने वाली व्यापारियों की मनमानी का सबूत बताते हैं. मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 7196 रुपये प्रति क्विंटल घोषित था. लेकिन सरकारी खरीद शुरू न होने से व्यापारी इसके मनमाने दाम लगा रहे थे. किसानों को मूंग के लिए अधिकतम 5200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा था. मूंग को हर हाल में बेचना किसानों की मजबूरी थी, क्योंकि उनके पास बारिश के इस मौसम में उसे सुरक्षित रखने की कोई जगह नहीं है.
2. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
पहले होता यह था कि व्यापारी उपज को किसानों से औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे. फिर कालाबाजारी होती थी. इस पर रोक लगाने के लिए एसेंशियल कमोडिटी एक्ट 1955 लाया गया था ताकि कारोबारी एक सीमा से अधिक कृषि उपज का भंडारण न करें. मगर नए विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति का प्रावधान है.
सरकार का मानना है कि यह अनाजों, दलहनों, खाद्य तेल, आलू और प्याज को अनिवार्य वस्तुओं की सूची से हटाकर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को मुक्त कर देगा. यह निजी उद्यमियों को भरोसा और उन्हें इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है. इन सभी अध्यादेशों के जरिये सरकार 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का मकसद हासिल कर सकेगी.
किसान एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव करने से कालाबाजारी बढ़ने की आशंका जता रहे हैं. उनका कहना है कि एसेंशियल एक्ट 1955 को कृषि उपज को जमा करने की अधिकतम सीमा तय करने और कालाबाजारी को रोकने के लिए बनाया गया था. लेकिन नई व्यवस्था में स्टॉक लिमिट को हटा दिया गया है. इससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी.
3. फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस बिल
सरकार का कहना है कि (व्यावसायिक) खेती के समझौते वक्त की जरूरत हैं. विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं. इस बिल से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे.
मगर, राहुल राज इससे उलट बताते हैं. उनका कहना था कि इसके जरिये कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जाएगा. कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा. उसके सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी. हाल में सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की गाइडलाइन जारी की है. इसमें कॉन्ट्रैक्ट की भाषा से लेकर कीमत तय करने का फॉर्मूला तक दिया गया है. लेकिन कहीं भी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई जिक्र नहीं है, जिस पर किसान नेता सवाल उठा रहे हैं. किसान नेता राहुल राज का कहना है कि इन बिलों पर अखिल भारतीय स्तर पर किसानों से मशविरा किया जाना चाहिए था और जानना चाहिए था कि असल में उनकी दिक्कतें क्या हैं?
कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति
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घासलेट की कालाबाजारी भी करता है साहू परिवार : 12-14 रुपए प्रति लीटर खरीदकर 50 से 60 रुपए लीटर में बेचता है
22-09-2022 : 03:09 pm ||
खुलासा फर्स्ट… इंदौर
एरोड्रम की विभिन्न कॉलोनियों में उचित मूल्य दुकानों से राशन की कालाबाजारी करने वाले रामजी पिता बलराम साहू और उसके परिवार ने गेहूं-चावल ही नहीं लूटा, बल्कि घासलेट की भी कालाबाजारी कर रहा है। वो दुकानों पर आने वाला घासलेट 12 से 14 रुपए कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति प्रति लीटर खरीदकर बस्तियों में जाकर 50 से 60 रुपए प्रति लीटर गरीबों को बेच रहा है। यानी घासलेट पर जिनका हक है, उन्हें ही ये महंगे दामों पर बेचता है। दादागिरी ऐसी है क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।
खुलासा फर्स्ट ने 16 सितंबर के अंक में एरोड्रम रोड की विभिन्न बस्तियों में राशन दुकानों से प्रधानमंत्री राशन योजना के तहत भेजे गए गेहूं-चावल को 2 रुपए किलो में खरीदकर बस्तियों-मोहल्लों कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति में महंगा बेचने की खबर प्रकाशित की थी। इस खबर पर काफी हल्ला मचा और नगर निगम के गरीब उपशमन विभाग के अधिकारियों ने जांच-पड़ताल की। हालांकि अभी जांच चल रही है कि साहू परिवार का एक और कारनामा सामने आया है। पता चला है साहू राशन की दुकानों पर आने वाला नाममात्र कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति का घासलेट भी 12-14 रुपए प्रति लीटर खरीद लेता है और फिर उसे बस्तियों में 50 से 60 रुपए प्रति लीटर के भाव से बेचता है। उसके गोडॉऊन पर रखे ड्रम इसके गवाह हैं। हालांकि अब घासलेट का इतना उठाव नहीं है लेकिन बस्तियों में वे परिवार, जो गैस का खर्च नहीं उठा पाते, आज भी घासलेट स्टोव जलाते हैं। उनके लिए इस योजना में नगर निगम घासलेट देता है। इस पर भी साहू परिवार की टेढ़ी नजर पड़ गई और गरीबों के मुंह से निवाला छीनने वाला घासलेट की भी कालाबाजारी कर रहा है।
कारगुजारी की जांच शुरू
एरोड्रम रोड की तमाम कालोनियों में साहू परिवार की कारगुजारियों की जांच शुरू कर दी है। जांच के बाद कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
BHEL, तिरुचिरपल्ली में 918 पदों पर वैकेंसी
ह्युमन रिसोर्स मैनेजमेंट, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल), त्रिची ने ट्रेड अप्रेंटिस के 918 पदों पर वैकेंसी का नोटिफिकेशन जारी किया है। .
ह्युमन रिसोर्स मैनेजमेंट, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल), त्रिची ने ट्रेड अप्रेंटिस के 918 पदों पर वैकेंसी का नोटिफिकेशन जारी किया है। इन पदों पर ऑनलाइन अप्लाई किया जा सकता है।
लास्ट डेट: 20 मार्च
फिटर: 330 पद, वेल्डर (जीई): 240 पद, टर्नर: 25 पद, मशीनिस्ट: 35 पद, इलेक्ट्रिशन: 75 पद, वायरमैन: 20 पद, इलेक्ट्रॉनिक मकैनिक: 15 पद, इंस्ट्रूमेंट मकैनिक: 20 पद, एसी एंड कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति रेफ्रिजेरेशन: 20 पद, डीजल मकैनिक: 15 पद, ड्राफ्ट्समैन (मकैनिक): 15 पद, शीट मेटल वर्कर: 15 पद, प्रोग्राम एंड सिस्टम एडमिनिस्ट्रेशन असिस्टेंट: 50 पद, फोर्जर एंड हीट ट्रीटर: 10 पद, कारपेंटर: 15 पद, प्लंबर:15 पद,
एमटीएल पैथॉलजी: 3 पद
एलिजिबिलटी: 10+2 सिस्टम के तहत साइंस और मैथ्स से 10वीं या समकक्ष और संबंधित ट्रेड में एनसीवीटी से नैशनल ट्रेड सर्टिफिकेट।
प्रोग्राम एंड सिस्टम एडमिनिस्ट्रेशन असिस्टेंट: 10+2 सिस्टम के तहत 10वीं और कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट ट्रेड में नैशनल ट्रेड सर्टिफिकेट।
प्लंबर: 10+2 सिस्टम के तहत 8वीं के साथ ट्रेड में एनसीवीटी से नैशनल ट्रेड सर्टिफिकेट।
एज रिलैक्सेशन: नियमों के अनुसार
सिलेक्शन प्रॉसेस: इंटरव्यू,स्किल टेस्ट
अप्लीकेशन फीस: कोई फीस नहीं
ऐसे करें अप्लाई: वेबसाइट के होमपेज पर जाएं। इंगेजमेंट ऑफ अप्रेंटिस पर क्लिक करें। स्टेप्स फॉलो कर फॉर्म सबमिट करें।
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कोरोनावायरस लॉकडाउन: ट्रेड यूनियनों ने पीएम को लिखी चिट्ठी, 5-7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की मांग
नई दिल्ली: केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कामकाजी आबादी के सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों के लिए 5-7 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज की घोषणा करने का आग्रह किया, उनका कहना है कि कोरोनोवायरस लॉकडाउन के कारण देश के साथ उनका अस्तित्व भी खतरे में है।
सांकेतिक चित्र (फोटो क्रेडिट: techworld)
10 ट्रेड यूनियनों ने प्रधानमंत्री को लिखे एक संयुक्त पत्र में कहा,
"हम मांग करते हैं कि सरकार तुरंत कोविड-19 के साथ-साथ उन कामकाजी लोगों के लिए जीवित रहने के साधनों की सुरक्षा की तत्काल आवश्यकता को पूरा करने के लिए 5 से 7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा करे जो अपरिहार्य लॉकडाउन की स्थिति से सबसे अधिक प्रभावित हैं।"
उन्होंने पत्र में जोर देकर कहा कि लोगों के रहन-सहन और आजीविका को बचाना कोविड-19 से लड़ाई की रणनीति का अभिन्न अंग कालाबाज़ारी के लिए ट्रेडिंग रणनीति माना जाना चाहिए।
ये दश ट्रेड यूनियन हैं: INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF और UTUC
उन्होंने MSMEs, छोटे खुदरा व्यापारियों, सड़क विक्रेताओं, स्वरोजगार के लिए रियायतों और ऋण स्थगन की घोषणा की भी मांग की, जो कोरोनोवायरस के प्रकोप के तेजी से प्रसार को देखते हुए सरकार द्वारा लगाए गए 21 दिन के लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
यूनियनों ने उल्लेख किया कि दैनिक वेतनभोगी, कैजुअल मजदूर, प्रवासी श्रमिक, कृषि श्रमिक, स्वयं फेरीवाले और विक्रेता के रूप में कार्यरत, रिक्शा चालक, ई-रिक्शा / ऑटो / टैक्सी चालक आजीविका संकट का सामना कर रहे हैं। ट्रक ड्राइवर और हेल्पर्स, कुली / पोर्टर्स / लोडर अनलोडर्स, कंस्ट्रक्शन और बीड़ी वर्कर, घरेलू कामगार और कूड़ा बीनने वाले आदि जैसे अन्य लोग लॉकडाउन / कर्फ्यू की स्थिति में अपनी आजीविका खो रहे हैं।
पत्र में कहा गया है कि उनके बहुत ही जीवित रहने को पूरी तरह से खतरे में डाल दिया गया है क्योंकि उन्होंने लॉकडाउन की स्थिति के कारण अपनी आय और जीविका का एकमात्र साधन खो दिया है।
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ट्रेड यूनियनों ने यह भी लिखा कि दवाओं, स्वच्छता सामग्री, सब्जियों / फलों और अन्य खाद्य पदार्थों जैसी आवश्यक डोर-टू-डोर डिलीवरी की अनुमति और सुविधा होनी चाहिए।
उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को तत्काल आवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी और जमाखोरी की जाँच करनी चाहिए।
भोजन पकाने के लिए श्रमिकों को तत्काल आय सहायता / वित्तीय राहत, मुफ्त राशन और मुफ्त ईंधन की आवश्यकता होती है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से आवश्यक अनाज और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति मौजूदा स्टॉक से तत्काल प्रभाव से की जानी चाहिए और अप्रैल तक इंतजार नहीं करना चाहिए।
उन्होंने यह भी मांग की कि विभिन्न कल्याण बोर्डों के तहत पंजीकृत श्रमिकों को तत्काल उपाय के रूप में 5,000 रुपये प्रदान किए जाएं।
यूनियनों ने कहा कि वे इस बात से सहमत थे कि वित्त मंत्री की अगुवाई वाली सरकार की आर्थिक कार्यबल केवल आईटी रिटर्न, जीएसटी, टीडीएस के बारे में समय सीमा बढ़ाने या दिवालिया कानून आदि के मामलों में विस्तार की घोषणा करने में व्यस्त थी, मुख्य रूप से बड़े व्यवसायों के बीच डिफ़ॉल्ट लाभ लगभग 54 करोड़ कामकाजी लोगों में से 40 करोड़ के लिए कोई घोषणा नहीं की गई थी, जिनके अस्तित्व को दांव पर लगा दिया गया है।
उन्होंने मज़दूरों की गिरफ़्तारी, मज़दूरी में कटौती, मज़दूरों पर नियोक्ता द्वारा प्रतिबन्धित कर, विशेषकर संविदा / आकस्मिक / अस्थाई / निश्चित अवधि के मज़दूरों की गिरफ़्तारी पर रोक लगाने के लिए मजबूत वैधानिक लागू उपायों की तत्काल घोषणा करने की माँग की। प्रतिष्ठानों, विशेष रूप से पूरे देश में निजी क्षेत्र में केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा लागू किया जाना है।
उन्होंने कहा कि श्रम मंत्रालय द्वारा सरकार या सलाहकार द्वारा की गई अपील लॉकडाउन की प्रक्रिया में रोजगार और कमाई के नुकसान को रोकने के लिए बिल्कुल भी काम नहीं कर रही है।
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