तरलता ढेर हो जाती है
अमीबा अत्यंत सरल प्रकार का एक प्रजीव (प्रोटोज़ोआ) है जिसकी अधिकांश जातियाँ नदियों, तालाबों, मीठे पानी की झीलों, पोखरों, पानी के गड्ढों आदि में पाई जाती हैं। कुछ संबंधित जातियाँ महत्वपूर्ण परजीवी और रोगकारी हैं।
जीवित अमीबा बहुत सूक्ष्म प्राणी है, यद्यपि इसकी कुछ जातियों के सदस्य १/२ मि.मी. से अधिक व्यास के हो सकते हैं। संरचना में यह जीवरस (प्रोटोप्लाज्म) के छोटे ढेर जैसा होता है, जिसका आकार निरंतर धीरे-धीरे बदलता रहता है। कोशिकारस बाहर की ओर अत्यंत सूक्ष्म कोशाकला (प्लाज़्मालेमा) के आवरण से सुरक्षित रहता है। स्वयं कोशारस के दो स्पष्ट स्तर पहचाने जा सकते हैं-बाहर की ओर का स्वच्छ, कणरहित, काँच जैसा, गाढ़ा बाह्य रस तथा उसके भीतर का अधिक तरल, धूसरित, कणयुक्त भाग जिसे आंतर रस कहते हैं। आंतर रस में ही एक बड़ा केंद्रक भी होता है। संपूर्ण आंतर रस अनेक छोटी बड़ी अन्नधानियों तथा एक या दो संकोची रसधानियों से भरा होता है। प्रत्येक अन्नधानी में भोजनपदार्थ तथा कुछ तरल पदार्थ होता है। इनके भीतर ही पाचन की क्रिया होती है। संकोचिरसधानी में केवल तरल पदार्थ होता है। इसका निर्माण एक छोटी धानी के रूप में होता है, किंतु धीरे-धीरे यह बढ़ती है और अंत में फट जाती है तथा इसका तरल बाहर निकल जाता है।
अमीबा की चलनक्रिया बड़ी रोचक है। इसके शरीर के कुछ अस्थायी प्रवर्ध निकलते हैं जिनको कूटपाद (नकली पैर) कहते हैं। पहले चलन की दिशा में एक कूटपाद निकलता है, फिर उसी कूटपाद में धीरे-धीरे सभी कोशारस बहकर समा जाता है। इसके बाद ही, या साथ साथ, नया कूटपाद बनने लगता है। हाइमन, मास्ट आदि के अनुसार कूटपादों का निर्माण कोशारस में कुछ भौतिक परिवर्तनों के कारण होता है। शरीर के पिछले भाग में कोशारस गाढ़े गोदं की अवस्था (जेल स्थिति) से तरल स्थिति में परिवर्तित होता है और इसके विपरीत अगले भाग में तरल स्थिति से जेल स्थिति में। अधिक गाढ़ा होने के कारण आगे बननेवाला जेल कोशिकारस को अपनी ओर खींचता है।
चित्र : अमीबा
1. संकोची रसधानी; 2. अन्नधानी; 3. कूटपाद; 4. कूटपाद; 5. आंतर रस; 6. स्वच्छ बाह्य रस; 7. कूटपाद; 8. केंद्रक 9.अन्नधानी।
अमीबा जीवित प्राणियों की तरह अपना भोजन ग्रहण करता है। वह हर प्रकार के कार्बनिक कणों-जीवित अथवा निर्जीव-का भक्षण करता है। इन भोजनकणों को वह कई कूटपादों से घेर लेता है; फिर कूटपादों के एक दूसरे से मिल जाने से भोजन का कण कुछ तरल के साथ अन्नधानी के रूप में कोशारस में पहुँच जाता है। कोशारस से अन्नधानी में पहले आम्ल, फिर क्षारीय पाचक यूषों का स्राव होता है, जिससे प्रोटीन तो निश्चय ही पच जाते हैं। कुछ लोगों के अनुसार मंड (स्टार्च) तथा वसा का पाचन भी कुछ जातियों में होता है। पाचन के बाद पचित भोजन का शोषण हो जाता है और अपाच्य भाग चलनक्रिया के बीच क्रमश: शरीर के पिछले भाग में पहुँचता है और फिर उसका परित्याग हो जाता है। परित्याग के लिए कोई विशेष अंग नहीं होता।
अमीबा का आहारग्रहण
इस चित्र में दिखाया गया है कि अमीबा आहार कैसे ग्रहण करता है। सबसे बाएँ चित्र में अमीबा आहार के पास पहुँच गया है। बाद के चित्रों में उसे घेरता हुआ और अंतिम चित्र में अपने भीतर लेकर पचाता हुआ दिखाया गया है।
श्वसन तथा उत्सर्जन (मलत्याग) की क्रियाएँ अमीबा के बाह्म तल पर प्राय: सभी स्थानों पर होती हैं। इनके लिए विशेष अंगों की आवयकता इसलिए नहीं होती कि शरीर बहुत सूक्ष्म और पानी से घिरा होता है।
कोशिकारस की रसाकर्षण दाब (ऑसमोटिक प्रेशर) बाहर के जल की अपेक्षा अधिक होने के कारण जल बराबर कोशाकला को पार करता हुआ कोशारस में जमा होता है। इसके फलस्वरूप शरीर फूलकर अंत में फट जा सकता है। अत: जल का यह आधिक्य एक दो छोटी धानियों में एकत्र होता है। यह धानी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है तथा एक सीमा तक बढ़ जाने पर फट जाती है और सारा जल निकल जाता है। इसीलिए इसको संकोची धानी कहते हैं। इस प्रकार अमीबा में रसाकर्षण नियत्रंण होता है।
प्रजनन के पहले अमीबा गोलाकार हो जाता है, इसका केंद्रक दो केंद्रकों में बँट जाता है और फिर जीवरस भी बीच से खिंचकर बँट जाता है। इस प्रकार एक अमीबा से विभाजन द्वारा दो छोटे अमीबे बन जाते हैं। संपूर्ण क्रिया एक घंटे से कम में ही पूर्ण हो जाती है।
प्रतिकूल ऋतु आने के पहले अमीबा अन्नधानियों और संकोची धानी का परित्याग कर देता है और उसके चारों ओर एक कठिन पुटी (सिस्ट) का आवेष्टन तैयार हो जाता है जिसके भीतर वह गरमी या सर्दी में सुरक्षित रहता है। पानी सूख जाने पर भी पुटी के भीतर का अमीबा जीवित बना रहता है। हाँ, इस बीच उसकी सभी जीवनक्रियाएँ लगभग नहीं के बराबर रहती हैं। इस स्थिति को बहुधा स्थगित प्राणिक्रम कहते हैं। उबलता पानी डालने पर भी पुटी के भीतर का अमीबा मरता नहीं। बहुधा पुटी के भीतर अनुकूल ऋतु आने पर कोशारस तथा केंद्रक का विभाजन हो जाता है और जब पुटी नष्ट होती है तो उसमें से दो या चार नन्हें अमीबे निकलते हैं।
मनुष्य की अँतड़ी में छह प्रकार के अमीबे रह सकते हैं। उनमें से एक के कारण प्रवाहिका (पेचिश) उत्पन्न होती है जिसे अमीबाजन्य प्रवाहिका कहते हैं। यह अमीबा अँतड़ी के ऊपरी स्तर को छेदकर भीतर घुस जाता है। इस प्रकार अँतड़ी में घाव हो जाते हैं। कभी कभी ये अमीबे यकृत (लिवर) तक पहुँच जाते हैं और वहाँ घाव कर देते हैं।
`3.0xx10^(-3)" मीटर"^(3)` आयतन के तरल पर `6.0xx10^(6)" न्यूटन"//"मीटर"^(2)` का दाब परिवर्तन करने पर उसमें `5.0xx10^(-7)" मीटर"^(3)` की कमी हो जाती है | तरल की (i) आयतन विकृति तथा (ii) आयतनात्मक प्रत्यास्थता गुणांक की गणना कीजिए |
ईश्वर समय में दिया हुआ है 30 * 10 के पावर माइनस 3 मीटर क्यों बाय तन के तरल पर 6 * 10 की पावर 6 न्यूटन प्रति मीटर स्क्वायर का ताप दाब का परिवर्तन करने पर परिवर्तन करने पर उसमें 5 * 10 की घात - 7 मीटर क्यूब की क्या जाती है या फिर कभी हो जाती है ठीक है धर्म की हाय तनवी करती हाय तनवी कर दी तथा आदित्यनाथ में तरलता ढेर हो जाती है प्रत्यास्थता गुणांक की गणना कीजिए ठीक है आज रात में पताशा मना कर दिया में बालक मोटर सैनी बी का मान निकालना है तो पहले हमें दिया हुआ क्या इसके लिए पहले इसका इतना में दिया वा के साथ सिर्फ 10 के पावर माइनस 3 मीटर क्यूब ठीक है और इसके दाग में जो परिवर्तन है डेल्टा पी दो कि कितना भी आवाज 6.02 * 10 की पावर 6 न्यूटन प्रति मीटर है और उसका दाम में जो यहां पर आगे तो आज दिन में जो परिवर्तन हो जाता है वह कितना हो जाता है 5 * 10 के पावर माइनस 7 यानी
इसका में डेल्टा भी काम आने में देर कहां पर 5 * 10 की पावर माइनस 7 मीटर के यहां से पहले आए थे विकृति निकाल नहीं तो आज तक भी कर दी क्या हो जाएगी आयतन में परिवर्तन बताओ प्राण निकाय तथा वह हो जाएगा मारा हाय तनवी करती बराबर हो जाएगा यहां से डेल्टा बी बटा भी ठीक है जल्दी बता भी हो क्या होगा डेल्टा भी कमाना कर यहां पर रखिए तो 5 * 10 की पावर माइनस 7 बटा क्या हो जाएगा यहां से विक्रमा नगरी में आप तो 3 * 10 की पावर माइनस यहां से अगर इसको हल करते हैं इसको अगर यहां पहल करेंगे तो यह मान हमारा याद आते हैं फिर पांच पांच बटा 3 * 10 के पावर माइनस 4 ठीक है यह बीमारी आयतन विकृति अब उसके बाद में हमें क्या निकालना इसके लिए हमें निकालना यहां पर आए 350 तक ना तो आए दिन पड़ता है सोना कैसे निकालते हैं देखते हैं तो आयतन प्रत्यास्थता गुणांक मरावी के द्वारा प्रदर्शित करते हैं जो कि क्या
दाब में परिवर्तन पता क्या होता है डेल्टा भी बता और क्या होता है यह ऋण आत्मक आ करता है दिन में कमी हो रही है तो क्या है ऋण आत्मक होता है और हमें डेल्टा भी यह आयतन में कमी है तो इसका मतलब डेल्टा भी हटा दी क्या हमारा एक कृषि ऋण आत्मक माने ठीक है कमी हो रही है यहां पर क्या कर इस कारण आत्मा मान यहां पर रखे हो जाएगा डेल्टा पी बटा किया जाएगा यहां से 5 बटा 3 * 10 के पावर माइनस ठीक है क्लास में आ गई अब यहां पर आ कर देखेंगे तो डेल्टा पी के हो जाएगा इधर से जो डेल्टा पी हमें दे रखा है कितना 6 * 10 की पावर से ठीक है तो इसको मैं लग गया तो 6 * 6 * 10 की पावर 6 की ठीक है और यह हमारा 5 बटा 3 * क्या हो जाएगा 10 के पावर माइनस ठीक है अब यहां से कर आगे इसको हल करते हैं तो यह माना भरा जाता है उसे 3.6 गुना तरलता ढेर हो जाती है 10 की पावर 10 ठीक है और जो कि किस में आएगा यह न्यूटन पर मीटर स्क्वायर में आ जाएगा
मुद्रा का प्रसार एवं मापन
मुद्रा का प्रसार एवं मापन :- किसी भी समय अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा को मापने के लिए केन्द्रीय बैंक कुछ मापक का प्रयोग करते हैं। भारत के संदर्भ में रिजर्व बैंक द्वारा 1977 में एक वर्क फोर्स का गठन किया गया, जिसके द्वारा बाजार में किसी समय पर कितनी मुद्रा उपलब्ध है, मापने के लिए 4 मापक तय किये गए जिन्हें M1, M2, M3 एवं M4 नाम से जाना जाता है। मुद्रा के मापन को समझने से पहले अर्थव्यवस्था में तरलता शब्द को समझना आवश्यक है।
अर्थव्यवस्था में तरलता (Liquidity) – अर्थव्यवस्था में तरलता दो प्रकार से हो सकती है –
1. बाजार की तरलता – किसी भी समय अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मुद्रा की कुल मात्रा को तरलता कहा जाता है। यदि तरलता अधिक है तो मुद्रास्फीति की स्थित उत्पन्न हो सकती हैं जबकि तरलता कम होने की स्थिति में अपस्फीति या मंदी आ सकती है।
2. मुद्रा की तरलता – मुद्रा की तरलता से संदर्भ मुद्रा के व्यय होने में लगने वाले समय से है। यदि समय कम लग रहा है तो वह मुद्रा अधिक तरल है। उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति के पास नगद, क्रेडिट कार्ड एवं सोने के रूप में परिसंपत्तियां (मुद्रा) उपलब्ध हैं तो नगद सबसे अधिक तरल (क्योंकि नगद सबसे जल्दी और आसानी से खर्ची जा सकती है), क्रेडिट कार्ड कुछ कम तरल और सोने की तरलता सबसे कम मानी जाएगी।
मुद्रा का मापन
1. M1= CU (Coins and Currency) + DD (Demand and Deposit)
CU अर्थात लोगों के पास उपलब्ध नगद (नोट एवं सिक्के), DD अर्थात व्यावसायिक बैंकों के पास कुल निवल जमा एवं रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाये। निवल शब्द से बैंक के द्वारा रखी गयी लोगों की जमा का ही बोध होता है और इसलिए यह मुद्रा की पूर्ति में शामिल हैं। अंतर बैंक जमा, जो एक व्यावसायिक बैंक दूसरे व्यावसायिक बैंक में रखते हैं, को मुद्रा की पूर्ति के भाग के रूप में नहीं जाना जाता है।
2. M2= M1 + डाकघर बचत बैंकों की बचत जमांए
3. M3= M1 + बैंक की सावधि जमाये(FD)
4. M4= M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमा राशि (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों को छोड़कर)
M1 से M4 की तरफ जाने पर मुद्रा की तरलता घटती है, परन्तु बाजार की तरलता बढ़ती जाती है।
M1>M2>M3>M4
संकुचित मुद्रा (Narrow Money)= M1 को संकुचित मुद्रा भी कहते है क्योंकि मात्रा में ये अन्य सभी से सबसे कम होती है, अर्थात इसमें पैसा सबसे कम होता है।
वृहद/बड़ी मुद्रा (Broad Money)= M3 को वृहद मुद्रा कहते है। सामान्यतः वृहद मुद्रा M4 को होना चाहिए परन्तु M1 से M4 तक जाते जाते उसे प्रयोग करना कठिन हो जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि उसकी (M4) की तरलता इतनी कम है कि उसे प्रयोग नहीं किया जा सकता अतः M3 को ही वृहद मुद्रा कहा जाता है।
मुद्रा के प्रकार- मुद्रा को कई आधारों पर कई वर्गों में बाँटा जा सकता है। यहां पर हम मुद्रा की भौतिक स्थिति एवं मांग के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण बता रहें हैं-
- धात्विक – इसमें सभी सिक्के आते हैं।
- कागजी – सभी नोट आते हैं।
- प्लास्टिक – क्रेडिट तरलता ढेर हो जाती है एवं डेबिट कार्ड आते हैं।
- बुरी मुद्रा – इसमें सभी कटे फटे नोट आते हैं।
- अच्छी मुद्रा – इसके अंतर्गत नये नोट आते हैं।
अच्छी और बुरी मुद्रा के सम्बन्ध में अर्थशास्त्री ग्रेसम्स ने एक नियम बताया था। जिसे ग्रेसम्स के नियम के नाम से जाना जाता है।
ग्रेसम्स का नियम- किसी भी अर्थव्यवस्था में बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर निकाल देती है तथा उसका स्थान ले लेती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के पास पुरानी कटी-फटी मुद्रा (बुरी मुद्रा) है तो वह उसे ही पहले प्रयोग में लाने का प्रयास करेगा न की नई मुद्रा (अच्छी मुद्रा) को, इस प्रकार बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। - गर्म मुद्रा – जिस मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग अधिक हो उसे गर्म मुद्रा कहा जाता है। उदाहरण के लिए डॉलर।
- ठण्डी मुद्रा – जिस मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग कम हो उसे ठण्डी मुद्रा कहा जाता है।
विदेशी मुद्रा
हर देश की मुद्रा का अलग मूल्य होता है जोकि उस देश के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसके उत्पादन हिस्से के आधार पर तय होता है। सामान्य भाषा में जब किसी देश की मुद्रा का हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक होगा तो उसका मूल्य भी अधिक होगा जैसे अमेरिका जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 20% हिस्सेदारी है, जबकि भारत की कुल 2% है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा का मूल्य निर्धारण
1. बाजार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में किसी देश की मुद्रा की मांग के आधार पर उसके मूल्य का निर्धारण किया जाता है। इसे प्रवाही विनिमय दर(Floating exchange rate) कहते हैं। प्रवाही इसलिए क्योंकि यह दर कम ज्यादा होते रहती है। किसी भी देश की मुद्रा का मूल्य निरपेक्ष(अकेले) नहीं होता वो हमेशा दूसरी मुद्रा के सापेक्ष होता है, अर्थात एक देश की मुद्रा की दूसरे देश के मुद्रा के साथ तुलना की जाती है इसे विनिमय दर(Exchange rate) कहते हैं। जैसे 1$=74रू0
2. सरकार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – कभी-कभी सरकारें भी जानबूझकर अपने देश की मुद्रा का मूल्य कम या ज्यादा कर देती है। ऐसा उस देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है –
प्राकृतिक जल मात्रा में से तरल सीमा घटाकर और मृदा के सुनम्यता सूचकांक के अनुपात को क्या कहा जाता है?
संकुचन सीमा (Ws): एक ऐसी स्थिति जब आर्द्रता की मात्रा में कमी से ठोस स्थिति में आ जाती है, मृदा द्रव्यमान के आयतन में कोई परिवर्तन नहीं देखा जाता है, मृदा की संगतता अर्ध से ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाती है। परिसीमीत जल की मात्रा को संकुचन सीमा कहा जाता है।
जहाँ, WL = तरल सीमा, WP = प्लास्टिक सीमा, WN = प्राकृतिक जल मात्रा
Share on Whatsapp
Last updated on Dec 15, 2022
RSMSSB JE Provisional Select List Out! The RSMSSB JE Final Result and Cut Off have been released for written examination held on 14th October 2022. The Rajasthan Subordinate & Ministerial Services Selection Board had announced a total of 189 vacancies for RSMSSB JE (Agriculture). The finally appointed candidates will be entitled to Pay Matrix Level 10.
क्या स्खलन से पूर्व निकलने वाले तरल से भी महिलाएं गर्भवती हो सकती हैं?
स्खलन से पहले भी उत्तेजित लिंग में गीलापन रहता है और तरल पदार्थ निकलता है उसे ही प्री-कम कहा जाता है। हम समझ सकते हैं कि आपके दिमाग में क्या सवाल चल रहा है। क्या इससे भी महिलाएं गर्भवती हो सकती है? यही ना? आइये जानते हैं।
प्री- कम क्या है?
उत्तेजना के दौरान लिंग में जो गीलापन रहता है उसे प्री-कम कहते हैं। इसे पूर्व-स्खलन भी कहा जाता है क्योंकि यह स्खलन से पहले होता है-यह एक अलग तरह का गीलापन होता है जो चरम उत्तेजना के दौरान होता है।
स्खलन से पूर्व निकलने वाला यह द्रव्य (प्री-कम) सफेद एवं क्षारीय तरल पदार्थ है जो एंजाइम और म्यूकस से बना होता है। यह यौन उत्तेजना के दौरान लिंग से निकलता है। यह मूत्रमार्ग के उसी रास्ते से निकलता है जिस रास्ते से स्खलन के दौरान वीर्य निकलता है।
यह तरल पदार्थ कूपर ग्रंथियों में बनता है। कूपर ग्रंथियां मटर के आकार की ग्रंथियां है जो लिंग के आधार के आंतरिक भाग में स्थित होती है जिनमें नलिकाएं होती हैं और ये नलिकाएं मूत्राशय में खाली हो जाती हैं। प्रत्येक व्यक्ति में इस तरल (प्री-कम) की मात्रा भिन्न होती है।
किसी व्यक्ति में प्री-कम की मात्रा ज़्यादा तो किसी में कम हो सकती है। इससे आपके कपड़े भी गीले हो सकते हैं। हालांकि यह पूरी तरह से सामान्य है और कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह से पूर्व -स्खलन की मात्रा को नियंत्रित नहीं कर सकता है और ना ही इसके समय को नियंत्रित किया जा सकता है। सब कुछ अपने आप होता है।
प्री-कम का उपयोग क्या है?
सामान्य सी बात है, प्री-कम वास्तव में इस बात का संकेत है कि आप या आपका पार्टनर कितना उत्तेजित है। यह यौन उत्तेजना को दर्शाने का एक प्राकृतिक तरीका है, इसे लेकर शरमाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
याद रखें कि जिस रास्ते से यह तरल बाहर आता है, उसी रास्ते से मूत्र भी बाहर निकलता है जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं। मूत्र अम्लीय होता है और प्री-कम क्षारीय होने के कारण यह मूत्र की अम्लता को बेअसर कर देता है ताकि जब स्खलन हो तो लिंग से बाहर निकलने से पहले ही शुक्राणु मूत्रमार्ग में अम्लता के कारण नष्ट ना हो पाएं।
शरीर यह नहीं जानता कि इसे सेक्स में कब आनंद आता है और कब गर्भधारण करना है। इसलिए यह हमेशा आगे की स्थिति को ध्यान में रखकर शुक्राणु को स्वस्थ रखने की कोशिश करता है। असुरक्षित यौन संबंध बनाने पर योनि के अंदर शुक्राणु को तैरने के लिए एक सहायक वातावरण बनाने और गर्भधारण के लिए अंडे से मिलने के लिए प्री- कम योनि की अम्लता को भी बेअसर कर देता है।
क्या प्री-कम से भी प्रेगनेंसी हो सकती है?
वास्तव में प्रेगनेंसी शुक्राणु से होती है। प्री-कम में भले ही कोई शुक्राणु नहीं होता लेकिन फिर भी इससे प्रेगनेंसी हो सकती है। आइये जानते हैं कैसे। पिछले स्खलन से बचे हुए कुछ शुक्राणु मूत्रमार्ग में रह जाते हैं। जब प्री-कम तरल पदार्थ मूत्रमार्ग से होते हुए लिंग से बाहर निकलता है तो यह उस बचे हुए शुक्राणु को रास्ते से उठा सकता है और उसे लिंग से बाहर निकालता है। अगर संभोग के दौरान कंडोम का उपयोग ना किया जाए तो इस तरल (प्री-कम) के साथ शुक्राणु भी बहकर योनि के अंदर चले जाते हैं जिससे महिला गर्भवती हो सकती है।
प्री-कम से गर्भावस्था होने के और भी कई तरीके हैं। पार्टनर की उंगली पर कुछ प्री-कम लगा हो सकता है और जब वह योनि में उंगली डालता है तो उसमें चिपके स्पर्म सीधे योनि में अंदर प्रवेश कर जाते हैं जिसके कारण गर्भधारण की संभावना हो सकती है।
इसके अलावा कुछ अन्य तरीके से भी प्री-कम के कारण गर्भधारण की थोड़ी संभावना होती है। उत्तेजित लिंग को योनि के द्वार पर लगाने से भी प्रेगनेंसी की संभावना होती है। लेकिन इस तरीके से प्रेगनेंसी की संभावना इसलिए कम होती है क्योंकि शुक्राणु शरीर के बाहर अधिक देर तक जिंदा नहीं रहते हैं। लेकिन फिर भी थोड़ी संभावना होती है, और जब कोई गर्भवती नहीं होना चाहता है तो इसी गुंजाइश भी क्यों छोड़ें?
उंगली में स्पर्म - क्या इससे गर्भधारण हो सकता है?
गर्भधारण के लिए महिला की योनि में पुरुष के स्पर्म को प्रवेश करना होता है। यह स्पर्म गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से फैलोपियन ट्यूब तक जाते है, जहां यह महिला के अंडे के साथ फ़्यूज़ होता है।
आमतौर पर स्पर्म योनि में पेनिस के स्खलन की प्रक्रिया से प्रवेश करता है, पर सैद्धांतिक रूप से तरलता ढेर हो जाती है ऊँगली के माध्मय से स्पर्म को योनि में प्रवेश करा कर भी गर्भधारण कराया जा सकता है।
पर यह तभी संभव है जब कोई पुरुष हस्तमैथुन के बाद स्खलन से आये हुए स्पर्म को उंगली में लेकर अपनी महिला साथी की योनी में डाल दें। या फिर अगर महिला अपने पार्टनर को अपने हाथों से हस्तमैथुन कराये और फिर इस प्रक्रिया में अगर उनकी उंगलियों पर स्पर्म लग जाये और फिर वो उन्ही उंगलियों को अपनी योनि में डाल लें।
हालांकि, इस तरह से गर्भधारण करने की संभावना काफी कम होती है| गर्भधारण करने के लिए, स्पर्म (सीमन) ताजा, गीला और बहुत अधिक मात्रा में होना चाहिए। जो कि उंगलियों के द्वारा जाना कठिन होता है। फिर भी अवांछित गर्भधारण से बचने के लिए ऐसे प्रयोगों से दूरी रखनी चाहिए। यौन संबंधों के बाद साफ़ सफाई का ध्यान रखने की सलाह का एक कारण ये भी है
क्या आप सेक्स से जुड़ा कोई सवाल पूछना चाहते हैं? नीचे कमेंट करिये या हमारे चर्चा मंच पेज पर एलएम विशेषज्ञों से पूछें। हमारे फेसबुक पेज पर भी नज़र डालना ना भूलें।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 208