भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत जीडीपी के संदर्भ में विश्व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह अपने भौगोलिक आकार के संदर्भ में विश्व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों के बावजूद विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्त करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी ।
1991 में भारत सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्तुत किए जो इस दृष्टि से वृहद प्रयास थे जिनमें विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश के प्रति आग्रह शामिल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे निकल आई है । सकल स्वदेशी उत्पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रतिशत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रतिशत के रूप में बढ़ गयी ।
कृषि
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि भारतीय व्यापारियों के लिए सेवाएं इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
विभिन्न नीतिगत उपायों के द्वारा कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई । कृषि में वृद्धि ने अन्य क्षेत्रों में भी अधिकतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में और अधिकांश जनसंख्या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मिलियन टन का एक रिकार्ड खाद्य उत्पादन हुआ, जिसमें सर्वकालीन उच्चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्पादन हुआ । कृषि क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रतिशत प्रदान करता है ।
उद्योग
औद्योगिक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है जोकि विभिन्न सामाजिक, आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है जैसे कि ऋण के बोझ को कम करना, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्मनिर्भर वितरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परिदृय को वैविध्यपूर्ण और आधुनिक बनाना, क्षेत्रीय विकास का संर्वद्धन, गरीबी उन्मूलन, लोगों के जीवन स्तर को उठाना आदि हैं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार देश में औद्योगिकीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्टि से विभिन्न नीतिगत उपाय करती रही है । इस दिशा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगिक नीति संकल्प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारित हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारित हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रतिबंधों को हटाना, पहले सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आरक्षित, निजी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनिश्चित मुद्रा विनिमय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि के द्वारा महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्यधिक अपेक्षित तीव्रता प्रदान की ।
आज औद्योगिक क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रतिशत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रतिशत अंशदान करता है ।
सेवाऍं
आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि आधरित अर्थव्यवस्था से ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रतिशत ( 1991-92 के 44 प्रतिशत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक तिहाई है और भारत के कुल निर्यातों का एक तिहाई है
भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्लेखनीय वैश्विक ब्रांड पहचान प्राप्त की है जिसके लिए निम्नतर लागत, कुशल, शिक्षित और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्ति के एक बड़े पुल की उपलब्धता को श्रेय दिया जाना चाहिए । अन्य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्यवसाय प्रोसिस आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परिवहन, कई व्यावसायिक सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधित सेवाऍं और वित्तीय सेवाऍं शामिल हैं।
बाहय क्षेत्र
1991 से पहले भारत सरकार ने विदेश व्यापार और विदेशी निवेशों पर प्रतिबंधों के माध्यम से वैश्विक प्रतियोगिता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति अपनाई थी ।
उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया । विदेश व्यापार उदार और टैरिफ एतर बनाया गया । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित विदेशी संस्थागत निवेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लिए जा रहे हैं । वित्तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्य अन्य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्तियों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।
आज भारत में 20 बिलियन अमरीकी डालर (2010 - 11) का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हो रहा है । देश की विदेशी मुद्रा आरक्षित (फारेक्स) 28 अक्टूबर, 2011 को 320 बिलियन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बिलियन अ.डालर की तुलना में )
भारत माल के सर्वोच्च 20 निर्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्च 10 सेवा निर्यातकों में से एक है ।
भारतीय व्यापारियों के लिए सेवाएं
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भारत सरकार
भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) भारत की प्रमुख व्यापार संवर्धन एजेंसी है,जो व्यापार और उद्योग के लिए सेवाओं का एक व्यापक स्पेक्ट्रम प्रदान करता है और भारत के व्यापार के विकास के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। आईटीपीओ के मुख्य कॉर्पोरेट उद्देश्य हैं:
भारत और विदेशों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों का आयोजन करने और भागीदारी करने के द्वारा लागत प्रभावी तरीके से भारत के बाहय और घरेलू व्यापार को बढ़ावा देना; खरीदार-विक्रेता बैठकें आयोजित करना और विदेशों में प्रचार कार्यक्रमों से संपर्क करना; विदेशों में विदेशी बाजार सर्वेक्षण करना, आदान-प्रदान करना और विदेश में प्रचार कार्यक्रमों से संपर्क करना; विदेशी बाजार सर्वेक्षण करना, व्यापारिक प्रतिनिधिमंडलों की यात्राओं का आदान-प्रदान और समन्वय करना, और विशिष्ट क्षेत्रों / बाजारों में व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए आवश्यकता आधारित अनुसंधान प्रारंभ करना
भारत और विदेशों दोनों में बाजारों तक पहुँचने के लिए छोटे और मध्यम उद्यमों का समर्थन और सहायता करना;
व्यापार की जानकारी का प्रसार और ई-कॉमर्स / व्यापार सुगम करना ;
गुणवत्तापूर्ण भौतिक अवसंरचना, सेवाओं और प्रबंधन को विकसित करना ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के व्यापार संवर्धन कार्यक्रमों जैसे सम्मेलनों और व्यापार प्रदर्शनियों को आयोजित करने में सक्षम बनाया जा सके; तथा भारत के बाहरी और घरेलू व्यापार के व्यापार संवर्धन में राज्य सरकारों, अन्य सरकारी व्यापार संवर्धन एजेंसियों, व्यापार और उद्योग संघों की भागीदारी और समर्थन को सूचीबद्ध करना।
प्रगति मैदान नई दिल्ली में अपने मुख्यालय, और बैंगलोर, चेन्नई, कोलकाता और मुंबई में क्षेत्रीय कार्यालय के साथ आईटीपीओ भारत और विदेशों में अपने कार्यक्रमों में देश के विभिन्न क्षेत्रों से व्यापार और उद्योग की प्रतिनिधि भागीदारी सुनिश्चित करता है ।
भारतीय छोटे खुदरा व्यापारियों के लिए ग्राहक सेवा में निरंतरता बनाए रखने के 4 तरिके-
व्यापार चाहे छोटा हो अथवा बङा उसको सफल बनाने में जो सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है वो है ग्राहक। अतः ग्राहकों के सुविधा का खयाल रखना बहुत ही आवश्यक है और जिसके लिये ग्राहक सेवा में निरंतरता बनाए रखना जरुरी है लेकिन कई कारणों से हम यह नहीं कर पाते जैसे व्यापार का बढ़ना, कुशल कर्मचारियों की कमी, कुशल प्रबंधन की कमी आदि ऐसे कारण हैं। अतः आज हम यहाँ आपको ग्राहक सेवा में निरंतरता बनाए रखने के 4 महत्वपूर्ण तरिकों के बारे में बताएँगे।
1.कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना-
अपने व्यवसाय की सफलता के लिये आपको अपने ग्राहकों से संपर्क रखना पङता है और इसके लिये आपको कर्मचारियों की आवश्यकता पङती है खासकर जो सीधेसीधे ग्राहकों से संपर्क बनाए रखते हैं और उन्हें अपनी सेवाओं की जानकारी देते हैं अथवा सेवाएँ प्रदान करते हैं। अतः ऐसे कर्मचारियों जो लगातार ग्राहकों से संपर्क में रहते हैं उनको समय-समय पर प्रशिक्षण देना बहुत ही जरुरी होता है जिससे उनको ग्राहकों से संपर्क बनाने, उनकों अपनी सेवाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने तथा आपकी सेवाओं को लेने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही आप अपने कर्मचारियों को ट्रेनिंग मैनुअल तथा हैंडबुक प्रदान कर सकते हैं जिससे वो अपने काम को आसानी तथा प्रभावीपूर्ण ढंग से कर पाएँगें और ग्राहक सेवा में निरंतरता बनी रहेगी।
2-ग्राहकों को जानना-
ग्राहकों को जानने से तात्पर्य उनके पसंद नापसंद तथा उनके सुविधाओं के बारे में जानने से हैं जिससे आप उनके उम्मिदों पर खरे उतर पाएँगें तथा साथ ही आपको अपने ग्राहकों को बेहतर सेवायें प्रदान करने में सहायता मिलेगी। याद रखें कि हर ग्राहक अलग-अलग होता है अतः उनकी पसंद भी अलग-अलग होगी अतः आपके लिये यह जानना बहुत ही जरुरी हो जाता है अतः जब भी आप ग्राहकों से संपर्क में आएँ उनसे अपनी सेवाओं के बारे में प्रतिक्रिया लें जिससे आपको अपने लक्षित ग्राहकों और उनके पसंद की जानकारी मिलेगी जिससे आप ग्राहकों के पसंद के हिसाब से सेवा प्रदान करने में सक्षम होंगे।
3-ग्राहक संपर्क स्थापित करना-
ग्राहक सेवा में निरंतरता बनाए रखने से आपके व्यापार को एक सबसे बङी सफलता प्राप्त होगी और वो है आपके निष्ठावान कस्टमर। किसी भी व्यवसाय के सफलता में उसके ग्राहको की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है अतः अपने व्यापार के लिए ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों से संपर्क स्थापित करना बहुत ही आवश्यक है पर उससे भी जरुरी है अपने साथ ऐसे कस्टमर को बनाए रखना जो लाइफलांग आपके साथ हो तथा जो सालों तक आपकी कम्पनी को राजस्व प्राप्त करने में सहायक हों। इसके साथ ही अपने व्यवसाय के छवि को बनाए रखने तथा नकारात्मक छवि से बचे रहने के लिये भी ग्राहक समपर्क बनाए रखना आवश्यक है।
4-ग्राहक के अनुभव को उम्दा करने के लिये सारे माध्यमों को एकीकृत्त करना-
कई बार ग्राहको को किसी सर्विस अथवा प्रोडक्ट को लेकर कोई शिकायत रहती है जिसके लिए उसको कई जगहों पर भटकना पङता है कभी कम्पनी को मेल करना, फिर कॉल कर शिकायत दर्ज कराना भारतीय व्यापारियों के लिए सेवाएं अथवा मैसेज करना इस प्रकार एक ही समस्या के ल्ए अलग-अलग जगहों पर जाना हर बार एक ही समस्या को फिर से समझाना तथा हर बार अलग-अलग जानकारी मिलने और सही समय पर समस्या के समाधान न होने से कस्टमर कई बार दुखी हो जाता है अतः ग्राहकों को ऐसी समस्या ना हो इसके लिये सारे माध्यमों को एकीकृत्त करना आवश्यक है जिससे ग्राहक सेवा में निरंतरता आती है।
निष्कर्ष-
किसी भी व्यापार में चाहे वो छोटा हो अथवा बङा सबसे ऊपर ग्राहक है और ग्राहकों को किसी भी प्रकार का इंतजार करना पसंद नहीं होता अतः आपकी कस्टमर सर्विस अच्छी होनी चाहिए। किसी भी व्यापार के लिये ग्राहक तैयार करना तथा ग्राहकों के भरोसे को हासिल करने में काफी समय लगता है अतः ग्राहकों से अच्छा संबन्ध बनाए रखने के लिये आपको अपनी सेवाओं में निरंतरता बनाए रखनी होगी जो कि आपके व्यापार के सफलता के लिए जरुरी है।
यदि आपके सेवाओं से आपके ग्राहक संतुष्ट नहीं हैं तो यह आपके व्यवसाय के लिये सही नहीं है अतः अपलनी सेवाओं से ग्राहकों को संतुष्ट करना सबसे आवश्यक है क्यूँकि जब आपके ग्राहक संतुष्ट होंगें तो आप पर उका भरोसा बढ़ेगा तथा वो आपकी सेवाओं को लेने के लिये उत्सुक होंगे।
मेक इन इंडिया
भारतीय अर्थव्यवस्था देश में मजबूत विकास और व्यापार के समग्र दृष्टिकोण में सुधार और निवेश के संकेत के साथ आशावादी रुप से बढ़ रही है । सरकार के नये प्रयासों एवं पहलों की मदद से निर्माण क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है । निर्माण को बढ़ावा देने एवं संवर्धन के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितम्बर 2014 को 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम की शुरुआत की जिससे भारत को महत्वपूर्ण निवेश एवं निर्माण, संरचना तथा अभिनव प्रयोगों के वैश्विक केंद्र के रुप में बदला जा सके।
'मेक इन इंडिया' मुख्यत: निर्माण क्षेत्र पर केंद्रित है लेकिन इसका उद्देश्य देश में उद्यमशीलता को बढ़ावा देना भी है। इसका दृष्टिकोण निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाना, आधुनिक और कुशल बुनियादी संरचना, विदेशी निवेश के लिए नये क्षेत्रों को खोलना और सरकार एवं उद्योग के बीच एक साझेदारी का निर्माण करना है।
'मेक इन इंडिया' पहल के संबंध में देश एवं विदेशों से सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है। अभियान के शुरु होने के समय से इसकी वेबसाईट पर बारह हजार से अधिक सवाल इनवेस्ट इंडिया के निवेशक सुविधा प्रकोष्ठ द्वारा प्राप्त किया गया है। जापान, चीन, फ्रांस और दक्षिण कोरिया जैसे देशों नें विभिन्न औद्योगिक और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भारत में निवेश करने हेतु अपना समर्थन दिखाया है। 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत निम्नलिखित पचीस क्षेत्रों - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है की पहचान की गई है:
सरकार ने भारत में व्यवसाय करने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कई कदम उठाये हैं। कई नियमों एवं प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है एवं कई वस्तुओं को लाइसेंस की जरुरतों से हटाया गया है।
सरकार का लक्ष्य देश में संस्थाओं के साथ-साथ अपेक्षित सुविधाओं के विकास द्वारा व्यापार के लिए मजबूत बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना है। सरकार व्यापार संस्थाओं के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने के लिए औद्योगिक गलियारों और स्मार्ट सिटी का विकास करना चाहती है। राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है के माध्यम से कुशल मानव शक्ति प्रदान करने के प्रयास किये जा रहे हैं। पेटेंट एवं ट्रेडमार्क पंजीकरण प्रक्रिया के बेहतर प्रबंधन के माध्यम से अभिनव प्रयोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
कुछ प्रमुख क्षेत्रों को अब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया है। रक्षा क्षेत्र में नीति को उदार बनाया गया है और एफडीआई की सीमा को 26% से 49% तक बढ़ाया गया है। अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के लिए रक्षा क्षेत्र में 100% एफडीआई को अनुमति दी गई है। रेल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निर्माण, संचालन और रखरखाव में स्वचालित मार्ग के तहत 100% एफडीआई की अनुमति दी गई है। बीमा और चिकित्सा उपकरणों भारतीय व्यापारियों के लिए सेवाएं के लिए उदारीकरण मानदंडों को भी मंजूरी दी गई है।
29 दिसंबर 2014 को आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में विभिन्न हितधारकों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद उद्योग से संबंधित मंत्रालय प्रत्येक क्षेत्र के विशिष्ट लक्ष्यों पर काम कर रहे हैं। इस पहल के तहत प्रत्येक मंत्रालय ने अगले एक एवं तीन साल के लिए कार्यवाही योजना की पहचान की है।
कार्यक्रम 'मेक इन इंडिया' निवेशकों और उनकी उम्मीदों से संबंधित भारत में एक व्यवहारगत बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। 'इनवेस्ट इंडिया' में एक निवेशक सुविधा प्रकोष्ठ का गठन किया गया है। नये निवेशकों को सहायता प्रदान करने के लिए एक अनुभवी दल भी निवेशक सुविधा प्रकोष्ठ में उपलब्ध है।
निर्माण को बढ़ावा देने के लिए लक्ष्य
- मध्यम अवधि में निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर में प्रति वर्ष 12-14% वृद्धि करने का उद्देश्य
- 2022 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी में 16% से 25% की वृद्धि
- विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2022 तक 100 मिलियन अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा करना
- समावेशी विकास के लिए ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीबों के बीच उचित कौशल का निर्माण
- घरेलू मूल्य संवर्धन और निर्माण में तकनीकी गहराई में वृद्धि
- भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाना
- विशेष रूप से पर्यावरण के संबंध में विकास की स्थिरता सुनिश्चित करना
- भारत ने अपनी उपस्थिति दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप दर्ज करायी है
- 2020 तक इसे दुनिया की शीर्ष तीन विकास अर्थव्यवस्थाओं और शीर्ष तीन निर्माण स्थलों में गिने जाने की उम्मीद है
- अगले 2-3 दशकों के लिए अनुकूल जनसांख्यिकीय लाभांश। गुणवत्तापूर्ण कर्मचारियों की निरंतर उपलब्धता।
- जनशक्ति की लागत अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है
- विश्वसनीयता और व्यावसायिकता के साथ संचालित जिम्मेदार व्यावसायिक घराने
- घरेलू बाजार में मजबूत उपभोक्तावाद
- शीर्ष वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों द्वारा समर्थित मजबूत तकनीकी और इंजीनियरिंग क्षमतायें
- विदेशी निवेशकों के लिए खुले अच्छी तरह विनियमित और स्थिर वित्तीय बाजार
भारत में परेशानी मुक्त व्यापार
'मेक इन इंडिया' इंडिया' एक क्रांतिकारी विचार है जिसने निवेश एवं नवाचार को बढ़ावा देने, बौद्धिक संपदा की रक्षा करने और देश में विश्व स्तरीय विनिर्माण बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए प्रमुख नई पहलों की शुरूआत की है। इस पहल नें भारत में कारोबार करने की पूरी प्रक्रिया को आसान बना दिया है। नयी डी-लाइसेंसिंग और ढील के उपायों से जटिलता को कम करने और समग्र प्रक्रिया में गति और पारदर्शिता काफी बढ़ी हैं।
अब जब व्यापार करने की बात आती है तो भारत काफी कुछ प्रदान करता है। अब यह ऐसे सभी निवेशकों के लिए आसान और पारदर्शी प्रणाली प्रदान करता है जो स्थिर अर्थव्यवस्था और आकर्षक व्यवसाय के अवसरों की तलाश कर रहे हैं। भारत में निवेश करने के लिए यह सही समय है जब यह देश सभी को विकास और समृद्धि के मामले में बहुत कुछ प्रदान कर रहा है।
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