आपने पूछा: अंतरिक्ष कबाड़ मुद्दे के संभावित समाधान क्या हैं?

टक्करों से बचने और अंतरिक्ष मलबे को कम करने का एक तरीका यह है कि उपग्रहों को उनके उपयोगी जीवन के अंत में स्व-दहन करने के लिए प्रोग्राम किया जाए, जैसे ही वे पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, जल जाते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें अधिक ईंधन, बढ़ते वजन और बढ़ती लागत के साथ लॉन्च करने की आवश्यकता है।

अंतरिक्ष कबाड़ की मात्रा को कम करने क्यों बुद्धि विकल्प? के लिए क्या विकल्प प्रस्तावित किए जा सकते हैं?

विचारों में रोबोट, नेट, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्ट्रिंग्स या लेजर बीम की मदद से अंतरिक्ष के मलबे को इकट्ठा करना या उसका निपटान करना शामिल है। ईएसए विकसित करता है, उदाहरण के लिए, अंतरिक्ष को साफ करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक उपग्रह।

अंतरिक्ष कबाड़ किसे माना जाता है?

स्पेस जंक मानव मूल की कोई भी वस्तु है जिसे अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था और इसकी उपयोगिता खो गई, लेकिन पृथ्वी की कक्षा में बनी रही।

अंतरिक्ष जंक के संबंध में खगोलविदों ने क्या समस्या बताई है?

संदेह यह है कि एक मिलीमीटर से बड़े मलबे के 100 मिलियन टुकड़े हैं। क्योंकि वे इतनी तेजी से (27 मील प्रति घंटे) परिक्रमा करते हैं, इनमें से प्रत्येक वस्तु में उन उपग्रहों को नुकसान पहुंचाने या क्यों बुद्धि विकल्प? नष्ट करने की क्षमता है, जिन पर हम बहुत अधिक निर्भर हैं।

स्पेस जंक के क्या परिणाम हो सकते हैं?

पेंटागन की एक रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा में "अंतरिक्ष प्रदूषक" ग्रह के चारों ओर के महत्वपूर्ण उपग्रहों को नष्ट कर सकते हैं, जिससे टेलीफोन, जीपीएस डिवाइस, टेलीविजन नेटवर्क प्रसारण में रुकावट आ सकती है और मौसम के पूर्वानुमान को रोका जा सकता है।

अंतरिक्ष का कबाड़ पृथ्वी की कक्षा में कैसे पहुंचता है?

व्यावहारिक रूप से सभी रॉकेट लॉन्च किए जाने पर पुर्जों और टुकड़ों को कक्षा में छोड़ देते हैं, जैसे छोड़े गए लॉन्च चरण, अलग किए गए हिस्से, अन्य। कई उपग्रह ऐसे भी हैं जिन्होंने अपना उपयोगी जीवन समाप्त कर लिया है और बिना किसी गतिविधि के पृथ्वी की कक्षा में घूमते रहते हैं, उन्हें अंतरिक्ष कबाड़ माना जाने लगा है।

अंतरिक्ष में क्यों बुद्धि विकल्प? कचरा क्यों नहीं फेंकते?

क्योंकि इसका कोई मतलब नहीं है।

उदाहरण के लिए: साओ पाउलो शहर एक दिन में 11,9 हजार टन कचरा पैदा करता है। यानी जहाज को 595 ट्रिप की जरूरत होगी, जिस पर करीब 37 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च होंगे। साओ पाउलो में एक दिन का कचरा नासा के 2017 के बजट (19,3 बिलियन अमेरिकी डॉलर) से लगभग दोगुना खर्च होगा!

हम सारा कचरा अंतरिक्ष में क्यों नहीं भेजते?

इसके अलावा, दुर्घटनाओं का खतरा होता है: लॉन्च अक्सर गलत हो जाते हैं, और लिफ्टऑफ के दौरान एक विस्फोट विकिरण को आसमान में दफनाने के बजाय चारों ओर बिखेर देगा।

अंतरिक्ष कबाड़ क्या है?

स्पेस जंक पृथ्वी की कक्षीय अंतरिक्ष में फेंकी गई कोई भी वस्तु है जो अब उपयोगी नहीं है, जैसे कि डिकमीशन किए गए उपग्रह, उपग्रह या रॉकेट के टुकड़े, और यहां तक ​​कि अंतरिक्ष मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा खोए गए उपकरण और उपकरण भी।

निष्क्रिय उपग्रहों और रॉकेटों के टुकड़े या अंतरिक्ष में अन्य अंतरिक्ष वस्तुओं को छोड़ने का जोखिम क्या है?

वे डिकमीशन किए गए रॉकेट और उपग्रहों, अंतरिक्ष यान के टुकड़ों और यहां तक क्यों बुद्धि विकल्प? ​​कि अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरणों से भी आते हैं। इनमें से किसी एक वस्तु के पृथ्वी पर गिरने और किसी व्यक्ति से टकराने का जोखिम दूर की कौड़ी है। हालांकि, मलबे संचालन और मानवयुक्त मिशनों में उपग्रहों से टकरा सकते हैं, अंतरिक्ष अन्वेषण को बाधित कर सकते हैं।

औद्योगिक अपशिष्ट क्या हैं?

औद्योगिक कचरे के कुछ उदाहरण रसायन, रबर, प्लास्टिक, लकड़ी, कपड़े, कागज, राख, धातु, कांच, गैस और तेल हैं।

अंतरिक्ष एजेंसियां ​​इन प्रक्षेपणों से अपने अंतरिक्ष कबाड़ का पीछा क्यों नहीं करतीं?

हालांकि स्पष्ट रूप से हानिरहित, ये टुकड़े, 25.000 किमी / घंटा की औसत गति से लॉन्च किए गए, एक उपग्रह को नुकसान पहुंचा सकते हैं, विशेषज्ञों का कहना है। औसतन, प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को संभावित टकराव से बचने के लिए युद्धाभ्यास करना चाहिए।

अंतरिक्ष के मलबे को लेकर वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चिंता क्या है?

वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या संभावित टक्कर से उत्पन्न अंतरिक्ष मलबा पड़ोसी उपग्रहों को नुकसान पहुंचा सकता है।

पृथ्वी की कक्षा में सेवामुक्त कृत्रिम उपग्रहों से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या क्या रही है?

और छोटी वस्तुओं के साथ सबसे बड़ी समस्या जैसे कि कक्षा में छोड़े गए हिस्से उनके छोटे आकार के होते हैं, जो उनके कैटलॉगिंग को रोकता है। निष्क्रिय उपग्रहों या रॉकेट के टुकड़ों जैसी बड़ी वस्तुओं को वेधशालाओं द्वारा सूचीबद्ध किया जाता है और उनके प्रक्षेपवक्र, ऊंचाई और गति को जानना संभव है।

पृष्ठ : बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५०७

प्रहावर सध्यान ५१६ कैसे होगा? सूर्योदय पर कैसे अन्यत्र छाया होती है, और अन्यत्र अातप . उसका अन्य प्रदेश नहीं होता जहाँ अाता नहीं होता। यदि दिगमागभेद इष्ट नहीं है, तो दूसरे परमाणु से एक परमाणु का प्रावरण कैसे होता है ? परमाणु का कोई पर भाग नहीं है, जहाँ आगमन से दूसरे का दूसरे से प्रतिघात हो, और यदि प्रतिघात नहीं है, तो सब परमाणुओं का समान- देशल होगा और सर्वसंघात परमाणुमात्र हो बायगा। यही पिण्डों के लिए है। पिण्ड या तो परमाणुओं से अन्य नहीं हैं, अथवा अन्य है। यदि पिण्ड परमाणुगों से अन्य इष्ट नहीं है, तो यह सिद्ध होता है कि वह पिण्ड के नहीं क्यों बुद्धि विकल्प? हैं। यह सैनिवेश परिकल्प है । यदि परमाणु संघात है, तो इस चिन्ता से क्या, यदि रूपादि लक्षण का प्रतिषेध नहीं होता। अत: रूपादि लक्षण अनेक ( बहु) नहीं हो सकता। जब परमाणु प्रसिद्ध हुआ तब उसके साथ साथ द्रव्यों का अनेकन्च भी दूषित हो गया। किन्तु रूप को हम एक द्रव्य भी संप्रधारित नहीं कर सकते। क्योकि यदि चक्षु का निषय एक द्रव्य कल्पित हो तो उसकी अविच्छिन्न उपलब्धि प्रत्यक्ष होगी, किन्तु अनुभव ऐसा नहीं बताता | पुनः यह विकल्प केवल युक्ति की परिसमाप्ति के लिए था। जब पृथग्भूत परमाणु असिद्ध है, तब संघात परमाणु असिद्ध हो जाता है, और सकृत् रूपादि का चतुरादि विषयत्व भी प्रसिद्ध हो जाता है। केवल विज्ञसिमात्र सिद्ध होता है। वैभाषिक पापों का निराकरण-प्रतिपक्षी एक दुसरा आक्षेप करते हैं । वह कहते है कि प्रमाण द्वारा अस्तित-नास्तित्व निर्धारित होता है, और प्रमाणों में प्रत्यक्ष प्रमाण गरिष्ठ है । वह पूछते हैं कि यदि अर्थ असत् है, तो प्रत्यक्ष बुद्धि क्यों होती है। यह प्रतिपक्षी वैभारिक हैं । वसुबन्धु गूछते हैं कि आप क्षणिकवादियों को कैसे विषय का प्रत्यक्षस्व इष्ट है, क्योंकि बब क्षणिक-विज्ञान उसको विषय बताता है, उसी क्षण में रूपरसादिक निरुद्ध हो गये होने हैं । "यह विषय मुझको प्रत्यक्ष है। ऐसो प्रत्यक्षबुद्धि जिस क्षण होती है, उसी क्षण में वह अर्थ नहीं देखा जाता, क्योंकि उस समय मनोविज्ञान द्वारा परिच्छेद और चतुर्विधान निरुद्ध हो चुके होते हैं। किन्तु यह कहा जायगा कि क्योंकि अमनुभूत का स्मरण मनोविज्ञान द्वारा नहीं होता, इस लिए अर्थ का अनुभव अवश्य होना चाहिये । वसुबन्धु उत्तर देते हैं कि अनुभूत अर्थ का स्मरण प्रसिद्ध है। हम कह चुके हैं कि किस प्रकार अर्थ के बिना ही अर्थाभास विशति का उसाद होता है, चतुर्विज्ञानादिक विज्ञप्ति हो अर्थ के रूप में प्राभासित होती है । इसी विशति से स्मृतिसंप्रयुक्त रूपादि वैकल्पिक मनोविशति उत्पन्न होती है । अतः स्मृति के उत्पाद से अर्था- नुभव नहीं सिद्ध होता। बहुधर्मवादी कहेंगे कि यदि जैसे स्वप्न में विज्ञप्ति का विषय अभूतार्थ होता है, बाग्रत अवस्था में भी वैसा ही हो तो उसका अभाष लोगों को स्वयं ही अवगत होना चाहिये । किन्तु ऐसा नहीं होता। इसलिए स्वप्न के तुल्य अर्थोपलब्धि निरर्थक नहीं है।

Class 9 Hindi Elective Chapter 6 चिकित्सा का चक्कर

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चिड़िया की बच्ची

पाठ – 6

इंटरनेशनल नर्स डे 2020: क्यों है दुनिया भर में केरल की नर्सों की मांग?

International Nurses Day 2020: भारत ही नहीं पूरी दुनिया में केरल या दक्ष‍िण भारत की नर्सें पसंद की जाती हैं. क्या आप जानते हैं, इसके पीछे की खास वजह क्या है?

प्रतीकात्मक फोटो

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2020,
  • (अपडेटेड 12 मई 2020, 11:59 AM IST)

भारत ही नहीं पूरी दुनिया में 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है. नर्स दिवस पर आज हम आपका इस खास बात पर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि क्यों भारत का एक हिस्सा नर्सिंग पेशे के लिए जाना जाता है. वो हिस्सा है दक्ष‍िण भारत. दक्ष‍िण भारत में भी केरल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां नर्सिंग पेशा सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. न सिर्फ राज्य की महिलाएं ही इस पेशे को पसंद करती हैं, बल्कि इस राज्य की नर्सों को भी पूरी दुनिया में पसंद किया जाता है. आइए जानते हैं इसके पीछे की खास वजह.

विशेषज्ञों का कहना है कि समर्पण, बुद्धि और समय की पाबंदी के मामले में दक्षिण भारत की नर्सों का कोई विकल्प नहीं है. दक्षिण भारत की महिलाएं ज्यादातर नर्सिंग को करियर बनाती हैं. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि केरल, कर्नाटक में सैकड़ों नर्सिंग कॉलेज और अन्य संस्थान हैं जो हर साल नर्सों को प्रशिक्षित करते हैं. यहां नर्सिंग की पढ़ाई आम है.

पड़ोसी देश अक्सर केरल में नर्सिंग छात्रों पर नज़र रखते हैं. उनका मानना है कि यहां कि छात्राएं काफी समर्पित भाव से कार्य करती हैं. इनकी कार्यक्षमता बहुत अधिक होती है. और समय की पाबंद भी होती हैं. यही कारण है कि विदेशों में भारतीय नर्सों की अधिक मांग है.

एक और फैक्ट यह भी है कि केरल में साक्षरता बहुत अधिक है और महिलाओं का अनुपात भी बाकि राज्यों के मुकाबले अधिक है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और हार्ट केयर फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल का कहना है कि नर्सिंग प्रोफेशन में आने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है, इस पेशे को जज्बे के तौर पर पसंद करना. अगर आपने इस पेशे को अपने करियर क्यों बुद्धि विकल्प? और पैशन के तौर पर पसंद किया है तभी आप इसे अपना सकते हैं.

उन्होंने कहा कि इस पेशे को अपनाने वाले लोग इसे सेवाभाव से लेते हैं. साउथ इंडिया में ज्यादातर महिलाओं में इस पेशे को अपनाने के पीछे उनके मन में बचपन से इस पेशे के प्रति लगाव पैदा हो जाता है. उसका कारण आसपास के माहौल या अपने परिवार में किसी व्यक्त‍ि को इस पेशे में देखकर उनमें ये भाव पैदा हो जाता है. इसी वजह से केरल की नर्सों को अंतरराष्ट्रीय तौर पर पसंद किया जाता है. कोरोना जैसी बीमारी के समय में केरल ने अपने हेल्थकेयर सिस्टम और इन्हीं समर्पित नर्सों की बदौलत कोरोना को नियंत्रित किया हुआ है.

क्रूर होती शिक्षा !

क्रूर होती शिक्षा !

शिक्षक वह व्यक्ति है जो बच्चों के व्यक्तित्व का विकास कर उनमें अच्छे मूल्यों और आदर्शों को विकसित करता है। जिससे कि वो आगे चलकर देश के उत्तम नागरिक बनें। शिक्षकों के कंधों पर बहुत बड़ा दायित्व होता है। वास्तव में वे ही देश के भाग्य निर्माता होते हैं। स्कूल एक बगीचे के समान होता है और बच्चे छोटे-छोटे पौधे के समान होते हैं। शिक्षक की भूमिका क्यों बुद्धि विकल्प? एक कुशल माली के समान होती है, जिसकी जिम्मेदारी पौधों की देशभाल सावधानीपूर्वक करना, उन्हें हरा-भरा रखना तथा उन्हें विकसित करने के लिए समय-समय पर खाद-पानी देना ताकि वह सौंदर्य और पूर्णता को प्राप्त कर सकें। शिक्षक भी यही कार्य करता है। वह अपने अनुभव और कौशल द्वारा बच्चों के विकास में सहायता करता है। बच्चे स्कूलों में शिक्षकों से ही ज्ञान पाते हैं। यह भी सच है कि प्रत्येक बच्चे की बुद्धि इतनी परिपक्व नहीं होती कि वह सही गलत की पहचान खुद कर सके। ऐसी स्थिति में शिक्षक ही बच्चों के मार्गदर्शक होते हैं।

राजधानी दिल्ली के एक प्राइमरी स्कूल में एक शिक्षिका द्वारा क्यों बुद्धि विकल्प? बच्ची को पहले कैंची से मारा गया और फिर उसे पहली मंजिल से नीचे फैंका गया। गनीमत है कि बच्ची जीवित बच गई लेकिन इस घटना ने स्कूली बच्चों के अभिभावकों को चिंतित कर दिया है। इस घटना ने न केवल बहुत सारे सवाल खड़े किए हैं, बल्कि शिक्षकों की भूमिका को भी संदेह के घेरे में ला दिया है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक प्राइवेट स्कूल में दो का टेबल नहीं सुनाने पर एक शिक्षक ने बच्चे के हाथ पर ड्रिल मशीन चला दी। राजस्थान के जालौर में मटके से पानी पीने पर अध्यापक ने 9 साल के मासूम बच्चे को इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई। पटना में एक टीचर ने पांच साल के बच्चे को इतना पीटा कि उसके हाथ का डंडा टूट क्यों बुद्धि विकल्प? गया। उसने इतने पर भी बस नहीं किया और वह लात-घूंसों से बच्चे पर टूट पड़ा और उसे तब तक पीटता रहा जब तक बच्चा बेहोश नहीं हो गया। फीस न देने पर बच्चों से मारपीट की खबरें आती रहती हैं। कानूनी तौर पर स्कूली बच्चों को पीटना तो दूर डांटने-फटकारने पर भी सख्त मनाही है।

प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावक तो इतने सजग हैं कि वह मामूली शिकायत मिलने पर ही शिक्षकों की शिकायत लेकर स्कूल पहुंच जाते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में कई बार शिक्षकों की कुंठा की घटनाएं सामने आ जाती हैं। यद्यपि बच्चों को यातनाएं देने वाले शिक्षकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है और मामला कुछ दिनों बाद शांत हो जाता है। एक सामान्य मनोदशा का व्यक्ति बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं कर सकता। ऐसी घटनाओं के कारण तलाशे जाने की जरूरत है कि शिक्षक हिंसक क्यों हो उठते हैं? उनकी कुंडा के पीछे प​ारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक कारण हो सकते हैं। आखिर उस शिक्षक की मनोदशा कैसी है कि वह हिंसक होकर बच्चों पर अत्याचार ढाने लगे।

शिक्षकों के मनोविज्ञान और मनोदशा का क्या कोई आंकलन किया जाता है। क्या उनमें शिक्षक बनने की योग्यता हासिल करने लायक संवेदनशीलता है। अगर बच्चों के प्रति उसके हृदय में कोई संवेदनशीलता या मानवीय क्यों बुद्धि विकल्प? दृष्टिकोण क्यों बुद्धि विकल्प? नहीं है तो वह शिक्षक नहीं शैतान के समान है। कई बार बच्चों का शरारतीपन या उदंडता पर गुस्सा अभिभावकों को भी आ जाता है तो स्वाभाविक है कि शिक्षकों को भी कभी-कभी गुस्सा आ जाता है। लेकिन इस गुस्से में शिक्षकों का बर्बरता की सीमा पार करना किसी भी तरह क्यों बुद्धि विकल्प? से उचित नहीं कहा जा सकता। अब वह दौर नहीं है जब अभिभावक अपने बच्चों को स्कूली शिक्षकों को सौंप कर यह कहते थे कि अब हमारी जिम्मेदारी खत्म और बच्चों को संवारने का काम आपका है। तब अभिभावक शिक्षकों द्वारा बच्चों को डांटने-फटकारने पर नाराज नहीं होते थे। जिस तरीके से शिक्षा का व्यवसायीकरण हो चुका है उसमें शिक्षकों का कोई सम्मान नजर नहीं आता। स्थितियां काफी बदल चुकी हैं, फिर भी शिक्षक के उत्तरदायित्व को कम नहीं आंका जा सकता। शिक्षक के बिना शिक्षा की प्रक्रिया चल ही नहीं सकती।

यदि शिक्षक योग्य नहीं होंगे तो शिक्षा की प्रक्रिया ठीक तरह से नहीं चल सकेगी। आज शिक्षक का कार्य केवल बच्चों को आकर्षित करना ही नहीं बल्कि बच्चों को समझने के लिए उन्हें बाल मनोविज्ञान का ज्ञान होना भी जरूरी है। अगर शिक्षक किसी मानसिक हालात से गुजर रहा है तो उसकी मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की व्यवस्था भी शिक्षण संस्थाओं में होनी चाहिए। संस्थान सरकारी हो या प्राइवेट शिक्षकों की कुंठा को परखने के ​लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए अन्यथा शिक्षकों के बच्चों को पीटने की दिल दहला देने वाली घटनाएं सामने आती रहेंगी। बच्चों को मार कर नहीं प्यार से कंट्रोल करना चाहिए। ​हिंसक व्यवहार से बच्चों का कोमल मन प्रभावित हो जाता है। अगर हर बच्चे को अच्छा शिक्षक मिले तो वह बहुत कुछ करके दिखा सकता है। शिक्षकों की नियुक्ति से पहले यह भी देखना जरूरी है कि वह बच्चों के प्रति अपने व्यवहार को लेकर कितना सजग और सहनशील रहता है। अगर ऐसी घटनाएं होती रहीं तो यह समाज के ​लिए और स्कूली प्रबंधन के लिए चिंता की बात है।

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