मनोविज्ञान अपने-आप में विज्ञान की एक शाखा है। मगर, ट्रेडिंग के मनोविज्ञान पर बहुत सारी किताबें लिखी गई है। इन किताबों को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कोई डॉक्टर पेट के एंजाइम वगैरह के अध्ययन के बाद कहे कि आपको भूख लगी। वहीं, आप तो बगैर कोई ऐसा अध्ययन या विश्लेषण किए ही बता सकते हैं कि आपको भूख लगी है। ट्रेडिंग करते वक्त हमें अपने मनोविज्ञान को ऐसा ही सहज बनाना होगा। अब सोम का व्योम…और और भी

share market (Page 120)

अक्सर हम ट्रेडिंग के नियम व अनुशासन तो बना लेते हैं। लेकिन उनका पालन नहीं करते क्योंकि हमारी मान्यताएं उसके आड़े आ जाती हैं। नियम कुछ कहता है, जबकि हमारे मन में बैठी धारणाएं हमें कहीं और खींचकर ले जाती हैं। इस आंतरिक खींचतान को निपटाने में वक्त लगता है। तब तक हमें बाज़ार में सौदे करने के बजाय मन को वस्तुगत सूचनाओं और सच आधारित चिंतन को स्वीकार करना सिखाना पड़ता है। अब मंगल की दृष्टि…और और भी

जिस पल हमें अहसास हो जाता है कि मन में बैठी मान्यताएं व धारणाएं शेयर बाज़ार में हमारी निवेश या ट्रेडिंग की रणनीति तय कर रही हैं, उसी पल हम उनको लेकर सतर्क हो जाते हैं और उन्हें बाज़ार की वास्तविकता के माफिक ढालने लगते हैं। अगर आपको वाकई सच की तलाश है तो अपने भ्रमों के प्रति आपका सचेत रहना ज़रूरी है। भ्रम के शिकार रहे तो ट्रेडिंग में कामयाबी नहीं मिलेगी। अब सोमवार का व्योम…और और भी

मान्यता को ढालें हकीकत के माफिक

मन है तो मान्यताएं रहेंगी। लेकिन शेयर बाज़ार से बराबर कमाने के लिए हमें उन्हें वास्तविकता के माफिक ट्यून करना होता है। कोई शेयर तभी बढ़ता है जब उसका भाव ऐसे स्तर पर होता है जहां सप्लाई की तुलना में मांग काफी ज्यादा हो। हालांकि आम मान्यता यह है कि हम चढ़े हुए शेयरों को ज्यादा चढ़ने की उम्मीद में खरीदते हैं, जबकि प्रोफेशनल ट्रेडर उस वक्त मुनाफावसूली की फिराक मे रहते हैं। अब शुक्रवार का अभ्यास…और और भी

जब कोई ब्रोकरेज फर्म किसी शेयर को खरीदने की रिपोर्ट निकालती है या कंपनी अच्छे नतीजे घोषित करती है तो शेयर बाजार में पोजिशनल ट्रेडिंग के मूल सिद्धांत ज़रूरी नहीं कि बाज़ार में उस शेयर की मांग बढ़ जाए और भाव चढ़ जाएं। हो सकता है उसके शेयर पहले ही इतने ज्यादा खरीदे जा चुके हों कि अच्छी खबर के आते ही लोग मुनाफावसूली पर उतर आएं। तब सप्लाई ज्यादा और मांग बेहद कम होगी। इसके चलते शेयर फटाफट शेयर बाजार में पोजिशनल ट्रेडिंग के मूल सिद्धांत गिरने लगेगा। अब गुरुवार की दशा-दिशा…और और भी

बाज़ार का सिग्नल ठीक, बाकी फालतू

आम तौर पर बाज़ार में खरीदने व बेचने के दो तरह के सिग्नल रहते हैं। पहला सिग्नल खुद बाज़ार देता है जो मांग व सप्लाई की स्थिति पर आधारित है और भावों व उनके चार्ट पर झलकता है। दूसरे सिग्नल में ब्रोकरेज़ व एनालिस्टों की रिपोर्ट, सकारात्मक, नकारात्मक खबरें, डाउनग्रेड व अपग्रेड जैसी बाकी सारी चीजें शामिल हैं। एक सिग्नल आपको सच्चाई से रूबरू कराता है, जबकि दूसरा सिग्नल शुद्ध बकवास होता है। अब बुध की बुद्धि…और और भी

शेयर बाजार में एक ही समय खरीदने और बेचने के भांति-भांति के सिग्नल चलते हैं। ये खबरों से लेकर टेक्निकल संकेतकों, कंपनी की घोषणाओं, ब्रोकरेज हाउसों के शेयर बाजार में पोजिशनल ट्रेडिंग के मूल सिद्धांत अपग्रेड या डाउनग्रेड जैसे अनेक रूप में होते हैं। इन सिग्नलों का मतलब दुनिया भर में लाखों ट्रेडर व निवेशक अपने मन में बैठी मान्यताओं व धारणाओं के हिसाब से निकालते हैं। लेकिन अहम बात यह है कि इनमें से कौन-सा मतलब बराबर कमाई कराता है। अब मंगल की दृष्टि…और और भी

रेटिंग: 4.41
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 193