स्मृति, हमारी सूचना को पहचनाने की क्षमता को भी धूमिल करती है. आप खोज रहे हैं कुछ, मिला उससे मिलता-जुलता कुछ और. इसीलिए संस्मरण को संदेह से देखा जाना चाहिए. उसे संदेह से परे मानने की गलती कतई नहीं करनी चाहिए.''
क्या है रेंज ट्रेडिंग
रेंज ट्रेडिंग एक सक्रिय निवेश रणनीति है जो एक ऐसी सीमा की पहचान करती है जिस पर निवेशक कम अवधि में खरीदता है और बेचता है। उदाहरण के लिए, एक शेयर $ 55 पर व्यापार कर रहा है और आपको लगता है कि यह $ 65 तक बढ़ने जा रहा है, फिर एक सीमा में व्यापार अगले कई हफ्तों में $ 55 और $ 65 के बीच.
ट्रेड इसे $५५ पर शेयर खरीदकर व्यापार रेंज का प्रयास कर सकते हैं, तो अगर यह $६५ तक बढ़ जाता है बेच । व्यापारी इस प्रक्रिया को दोहराना होगा जब तक वह सोचता है कि शेयर अब इस सीमा में व्यापार करेंगे.
टाइंस रेंज के
रेंज ट्रेडिंग रणनीति का उपयोग करते समय सफलतापूर्वक व्यापार करना व्यापार करने के लिए व्यापारियों को श्रेणियों के प्रकारों को जानना और समझना चाहिए। यहां चार सबसे आम प्रकार की सीमा दी गई है जो आपको उपयोगी मिलेगी.
रेकीय रेंज - रेंज ट्रेडिंग रणनीति का उपयोग करते समय व्यापारियों को आयताकार सीमा दिखाई देगी, कम समर्थन और ऊपरी प्रतिरोध के बीच बग़ल में और क्षैतिज मूल्य आंदोलन होंगे, यह दौरान आम है अधिकांश बाजार की स्थिति.
चार्ट से यह देखना आसान है कि मुद्रा जोड़ी का मूल्य आंदोलन एक आयताकार (इसलिए नाम) सीमा बनाने वाले समर्थन और प्रतिरोध लाइनों के भीतर कैसे रहता है, जिससे व्यापारी स्पष्ट रूप से खरीद और बिक्री देख सकते हैं अवसर.
रेंज ट्रेडिंग रणनीति पर लब्बोलुआब
ट्रेडर्स जो रेंज ट्रेडिंग रणनीति का उपयोग करना चुनते हैं, उन्हें न केवल प्रकार की श्रेणियों को समझना होगा, बल्कि इसका उपयोग करने के पीछे पड़ी रणनीति को समझना होगा.
रेंज ट्रेडिंग रणनीति को कभी-कभी बहुत सरलीकृत होने के लिए आलोचना की जाती है, लेकिन वास्तविकता में यह कभी विफल नहीं हुआ। व्यापारियों को सीमा की पहचान करने, उनके प्रवेश के समय और जोखिम के अपने जोखिम को नियंत्रित करने की जरूरत है और निश्चित रूप से समझते हैं रणनीति के मूल सिद्धांत। रेंज ट्रेडिंग काफी लाभदायक हो सकती है
किताबें/आलोचना: विधाओं की विरासत
- नई दिल्ली,
- 30 अप्रैल 2012,
- (अपडेटेड मौलिक विश्लेषण रणनीति पर लब्बोलुआब 30 अप्रैल 2012, 9:15 PM IST)
हमारे समय में जानकारियों का विस्फोट हो रहा है. सूचनाओं का तंत्र इतना विकसित हो गया है और हो रहा है कि गति के कारण सब कुछ अस्थिर, गतिमान लग रहा है. इस सबका दबाव साहित्य पर पड़ना अनिवार्य है. उसकी वस्तु के साथ-साथ उसके रूप तट भी टूट रहे हैं. वस्तु की व्याख्या-विश्लेषण करने वालों की कमी नहीं है लेकिन रूप पर गंभीर विचार करने वाले कम क्या, दुर्लभ हैं.
ऐसी स्थिति में प्रतिष्ठित कथाकार और चिंतक अरुण प्रकाश की साहित्य रूपों पर मौलिक विचार करने वाली इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व है. इस मौलिक विश्लेषण रणनीति पर लब्बोलुआब किताब के प्रारंभ में ही रूप-बंध और विधा को पृथक करते हुए मौलिक विश्लेषण रणनीति पर लब्बोलुआब फार्म के लिए रूपबंध और जेनर के लिए विधा शब्द का प्रयोग किया गया है. रूप-बंध शब्द-संयोग मौलिक है. हिंदी आलोचना में अब तक रूप और विधा में ऐसा अंतर नहीं किया जाता था. आशा है कि अरुण प्रकाश द्वारा प्रस्तावित प्रयोग-अंतर मान्य होगा.
पांच साल की 'माया'नगरी
वर्षों पहले नरसिंह राव के इस बयान में न सिर्फ़ महिला सशक्तिकरण की बात थी, बल्कि दलित वर्ग को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने को लेकर चल रहे बदलाव की ओर भी इशारा था.
एक दलित परिवार में पैदा हुईं मायावती का राजनीतिक सफ़र उतार चढ़ाव भरा रहा है. एक समय दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली मायावती देश के सबसे बड़े राज्य की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री बनीं.
मायावती की जीवनी लिखने वाले अजय बोस बताते हैं कि वर्ष 1977 में कांशीराम मायावती से मिलने पहुँचे, उस समय मायावती सिविल सेवा की तैयारी कर रही थी.
उन्होंने मायावती से कहा था- मैं एक दिन तुम्हे इतना बड़ा नेता बना दूँगा कि एक आईएएस अधिकारी नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में आईएएस अधिकारी तुम्हारे आदेश के लिए खड़े रहेंगे.
और ये बात सच भी हुई जब 1995 में 39 साल की उम्र में मायावती ने देश के सबसे बड़े राज्य की सबसे युवा मुख्यमंत्री बनीं.
वापसी के लिए संघर्ष
दलितों की मसीहा और प्रभावशाली नेता के रूप में उभरीं मायावती आज अपने राज्य उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही हैं.
पिछले पाँच वर्षों के दौरान उन पर आरोपों की झड़ी लगी और भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें 21 मंत्रियों को हटाना पड़ा. पार्कों में अपनी मूर्तियाँ लगवाने को लेकर सवाल उठे, तो सरकारी धन के दुरुपयोग पर भी विपक्ष ने उनको घेरा.
लेकिन इन सब आरोपों के बीच उत्तर प्रदेश चुनाव में मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी को ख़ारिज करना इतना आसान नहीं. दलितों के बीच पार्टी की ज़बरदस्त पैठ है और इन पाँच वर्षों में गिनाने के लिए कई उपलब्धियाँ भी.
लेकिन, क्या इन पाँच वर्षों में एक राजनेता के रूप में मायावती परिपक्व हुई हैं.
वरिष्ठ पत्रकार उदय सिन्हा कहते हैं, "मायावती परिपक्व ज़रूर हुई हैं, लेकिन उन्होंने अपने वोटरों और क़रीबी लोगों से दूरी बना ली है. हालांकि ये दूरी नौकरशाही ने बनाई हुई है."
उपलब्धियां
लेकिन मायावती ने क्या इन पाँच वर्षों में कुछ किया ही नहीं. अंबेडकर ग्राम में अभूतपूर्व विकास को बहुजन समाज पार्टी बड़ी उपलब्धि मान रही है. और तो और पार्कों मौलिक विश्लेषण रणनीति पर लब्बोलुआब के निर्माण को भी कहीं न कहीं दलित अपने सम्मान से जोड़कर देखता है.
अजय बोस कहते हैं, "पार्क और मूर्तियाँ मायावती का पागलपन नहीं, इसके पीछे उनकी एक राजनीतिक सोच है और दलित इसे अच्छा काम मानता है."
जानकारों की मानें, तो लब्बोलुआब ये है कि मायावती ने अपने मौजूदा कार्यकाल की शुरुआत से ही उन लोगों से किनारा करना शुरू कर दिया, जो उनके क़रीबी रहे थे और जो उनके समर्पित मतदाता थे.
लेकिन बाद में ही सही मायावती को ये सच समझ में आ गया और दलितों के पास भी मायावती के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं. सवाल ये भी है कि मायावती पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के मौलिक विश्लेषण रणनीति पर लब्बोलुआब बाद क्या उनका दलित वोटबैंक खिसकेगा.
उदय सिन्हा इसे पूरी तरह ख़ारिज करते हैं. कहते हैं, "ड्राइंग रूप में चलने वाले विचार-विमर्श में तो इसका असर पड़ सकता है, लेकिन मतदान केंद्रों पर इसका असर नहीं पड़ेगा. उत्तर प्रदेश में मायावती के समर्पित वोटर 11 प्रतिशत हैं. ये 11 प्रतिशत वोट मायावती के अलावा कहीं और नहीं जाएगा. मायावती के समर्पित वोटरों में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है."
गांजा पीने वाले की कमाल की सादगी (डायरी 2 जनवरी, 2022)
हिंसक लड़ाइयों के बूते किसी भी मुल्क व समुदाय को अपने अधीन नहीं रखा जा सकता है। विश्व भर का इतिहास हमारे सामने है। हिंसा से कुछ काल तक तो राज किया जा सकता है, लेकिन इसमें स्थायीत्व नहीं होता। वियतनाम और अफगानिस्तान के रूप में अमरीका का उदाहरण तो सबसे ताजा है। इसके पहले भी हिटलर का उदाहरण ले लें, वह सिकंदर की तरह विश्व विजय के अभियान पर निकला था। उसके पराक्रम का औरा इतना था कि फ्रांस जैसे देश तक ने चार दिनों के अंदर ही हार मान ली थी। लेकिन जैसे ही वह सोवियत मौलिक विश्लेषण रणनीति पर लब्बोलुआब संघ की तरफ बढ़ा, उसे अपनी असलियत का अहसास होने लगा और अंतत: उसे खुद को गोली मारनी पड़ी। हालांकि इसमें एक मामला यह है कि फ्रांस की क्रांति के बाद वहां की जीवन व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव मौलिक विश्लेषण रणनीति पर लब्बोलुआब आया था। यह कहना बेहतर होगा कि वहां के लोग सुविधाभोगी हो चुके मौलिक विश्लेषण रणनीति पर लब्बोलुआब थे और वे इस कारण डर गए थे कि यदि हिटलर के साथ लड़ाई हुई तो उनके महल और सड़कों की सुंदरता नष्ट हो जाएगी। लेकिन सोवियत संघ में चूंकि मजदूरों का राज था, तो हिटलर को शिकस्त मिली।
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