सफेदपोश बनाम मेहनती काम

सन 2000-2001 में यानी सदी में बदलाव के वक्त देश से होने वाले वस्तु और सेवा निर्यात में विनिर्मित वस्तुओं का निर्यात प्रमुख हिस्सेदार था। सेवा निर्यात का आकार विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात का आधा था। एक दशक बाद यानी 2010-11 में भी विनिर्मित वस्तुओं का निर्यात देश के कुल निर्यात में सबसे बड़ा हिस्सेदार था लेकिन इसकी हिस्सेदारी कम हुई थी। गत वित्त वर्ष यानी 2020-21 तक सेवा निर्यात (206 क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? अरब डॉलर) काफी हद तक वस्तु निर्यात (208 अरब डॉलर) के करीब पहुंच गया और आयात का कुल आकार 498 अरब डॉलर हो गया। दो दशक की अवधि में सेवा निर्यात ने विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात के आधे से लगभग बराबरी तक का सफर तय कर लिया। यदि कुल निर्यात के बजाय वृद्धि पर नजर डाली जाए तो रुझान अधिक स्पष्ट है। 2020-21 तक के एक दशक में सेवा निर्यात में 81 अरब डॉलर की वृद्धि हुई जबकि विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में इसके आधे से भी कम यानी करीब 37 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई। देश में सेवा और वस्तु निर्यात का अनुपात अब अमेरिका तथा अन्य औद्योगीकृत देशों के निर्यात के समान हो गया है। भारत जैसे विविध विकासशील देश के लिए यह अनुपात विशिष्ट है। यह रुझान चालू वर्ष में उलटता नजर आता है। इस वर्ष वस्तु निर्यात, सेवा निर्यात की तुलना में तेज गति से बढ़ा। ऐसा शायद इसलिए हुआ कि पेट्रोलियम वस्तुओं के निर्यात की कीमतें ऊंची रहीं। यह आशा नहीं करनी चाहिए कि रुझान में यह पलटाव स्थायी होगा।
देश की प्राथमिक प्रतिस्पर्धी बढ़त अभी भी उसकी श्रम शक्ति की लागत है। यह बात शिक्षित श्रम शक्ति से स्पष्ट है और सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात में देश की प्रतिस्पर्धा से जाहिर होती है। चिप निर्माण के बजाय चिप डिजाइन करने में हमारी महारत तथा बेहतर मार्जिन होने के कारण ज्ञान आधारित उत्पादों मसलन औषधियों तथा विशिष्ट रसायनों के निर्यात में हमारी सफलता भी यही दर्शाती है। श्रम की लागत में हमारी प्रतिस्पर्धी बढ़त कृषि निर्यात की बढ़ती महत्ता को भी रेखांकित करती है। यह इसलिए हुआ कि खेती के काम में मेहनताना भी कम है। एक तथ्य यह भी है कि बीते एक दशक में कृषि निर्यात में 68 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि विनिर्मित वस्तु निर्यात में केवल 22 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। प्रश्न यह है कि श्रमिकों की अधिक जरूरत वाले, बड़े पैमाने पर लेकिन कम मार्जिन वाले उत्पादों के क्षेत्र मसलन तैयार वस्त्र और जूतों (पूर्वी एशिया की शुरुआती सफलता में इनकी अहम भूमिका रही) के मामले में श्रम शक्ति लागत की हमारी बढ़त क्यों नहीं सामने आती। जैसा कि हर कोई जानता है इसका उत्तर है नीतिगत विफलता। शुरुआती दौर में इन वस्तुओं को छोटे उद्योगों के लिए संरक्षित रखा गया इसलिए बड़े पैमाने पर काम नहीं हो सका। इसके बाद कड़े श्रम कानूनों ने कार्यस्थल पर लचीले कार्य व्यवहार की राह रोकी, इन क्षेत्रों को वे प्रोत्साहन नहीं मिल सके जो पूंजी आधारित उद्योगों को मिले। इनमें से कुछ मसले हल किए गए जबकि बाकी बरकरार रहे।
क्या निर्यात बाजारों के लिए श्रम आधारित विनिर्माण पर जोर देने के लिहाज से बहुत देर हो चुकी है? नहीं उच्च श्रम लागत के बावजूद चीन वस्त्र निर्यात करके हमसे अधिक आय जुटाता है। परंतु एक अहम कारण से यह काम कठिन अवश्य हो गया है और वह है रुपये की विनिमय दर। यदि भारत केवल वस्तुओं का व्यापार करता तो 150 अरब डॉलर (जीडीपी का 5 फीसदी) के भारी भरकम घाटे ने रुपये के मूल्य को कम किया होता। उससे हमारी विनिर्मित वस्तुएं निर्यात बाजार में सस्ती हुई होतीं और घरेलू उत्पादन आयात के मुकाबले सस्ता होता। मुद्रा में यह गिरावट नहीं हुई क्योंकि वस्तु व्यापार के घाटे की प्राय: सेवा अधिशेष से भरपायी हो जाती है। स्पष्ट कहा जाये तो सफेदपोश काम मेहनत के काम पर भारी पड़ा है। समस्या को पहचानते हुए भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी में शामिल होने की वार्ता के दौरान सेवा व्यापार खोलने के बदले वाणिज्यिक व्यापार में रियायत चाही। परंतु चीन तथा अन्य देशों के प्रभाव में ऐसा नहीं हो सका। तब भारत इससे बाहर हो गया लेकिन उससे समस्या का अंत क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? तो नहीं हुआ। बल्कि बाहरी पूंजी को लेकर खुलापन बढ़ाकर हमने अपनी मुश्किलें और अधिक बढ़ा ली हैं। बाहरी पूंजी रुपये को मजबूती देती है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को तवज्जो दी गई क्योंकि वे घरेलू रोजगार तैयार करते हैं। इसके परिणामस्वरूप डॉलर का अधिशेष हुआ और रिजर्व बैंक को गैर जरूरी रूप से डॉलर खरीदने पर मजबूर होना पड़ा। इससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा। ऐसे कदम एक सीमा तक ही उठाये जा सकते हैं इसलिए कम मार्जिन वाले विनिर्माण निर्यात को व्यावहारिक रखने के लिहाज से रुपये के महंगा बने रहने की संभावना है। खासतौर पर भारत के पंगु परिचालन माहौल में। हालिया बजट में राहत की बात यह है कि सरकार ने बॉन्ड बाजार को अंतरराष्ट्रीय पूंजी के लिए ज्यादा नहीं खोला। यदि ऐसा किया जाता तो समस्या और गहन हो जाती।

Stock Market Update : शेयर बाजारों में आई तेजी, शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स, निफ्टी चढ़े, डॉलर के मुकाबले क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? रुपया टूटा

Stock Market Update : शेयर बाजारों में तेजी का रुख देखा जा रहा है. शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स और निफ्टी ऊपर चढ़कर कारोबार करते हुए देखे गए हैं. वहीं, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया आज टूटा है.

Published: December 19, 2022 10:58 AM IST

Sensex jumps up today in initial trade.

Sensex Today : घरेलू शेयर बाजारों में बीते दो सत्रों से जारी गिरावट का दौर थम गया और सोमवार को शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स और निफ्टी में बढ़त रही.

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इस दौरान बीएसई का 30 शेयरों वाला सूचकांक 127.48 अंक की तेजी के साथ 61,465.29 अंक पर पहुंच गया। व्यापक एनएसई निफ्टी 37.85 अंक बढ़कर 18,306.85 अंक पर था.

सेंसेक्स में पॉवर ग्रिड, विप्रो, आईटीसी, भारती एयरटेल, नेस्ले, बजाज फिनसर्व, बजाज फाइनेंस, महिंद्रा एंड महिंद्रा तथा एचडीएफसी बढ़ने वाले प्रमुख शेयरों में शामिल थे.

दूसरी ओर टाटा मोटर्स, इंडसइंड बैंक, लार्सन एंड टूब्रो के शेयरों में गिरावट हुई.

अन्य एशियाई बाजारों में सियोल, तोक्यो, शंघाई और हांगकांग के बाजारों में गिरावट रही। अमेरिकी बाजार भी शुक्रवार को नुकसान के साथ बंद हुए थे.

पिछले कारोबारी सत्र में, शुक्रवार को तीस शेयरों पर आधारित बीएसई सेंसेक्स 461.22 अंक यानी 0.75 प्रतिशत की गिरावट के साथ 61,337.81 अंक पर बंद हुआ था। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 145.90 अंक यानी 0.79 प्रतिशत की गिरावट के साथ 18,269 अंक पर बंद हुआ था.

अंतरराष्ट्रीय तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड 1.10 प्रतिशत की बढ़त के साथ 79.91 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था.

शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने शुक्रवार को शुद्ध रूप से 1,975.44 करोड़ रुपये के शेयर बेचे.

डॉलर के मुकाबले टूटा रुपया

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी और घरेलू बाजार से विदेशी पूंजी की निकासी के बीच रुपया सोमवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले दो पैसे की गिरावट के साथ 82.77 के स्तर पर आ गया.

विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में कमजोरी की वजह से रूपये की गिरावट सीमित रही.

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनियम बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 82.80 पर कमजोर खुला, फिर कुछ बढ़त के साथ 82.77 के स्तर पर आ गया जो पिछले बंद भाव के मुकाबले दो क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? पैसे की गिरावट को दर्शाता है.

रुपया पिछले सत्र में, शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले 82.75 पर लगभग सपाट बंद हुआ था.

इसबीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.15 प्रतिशत की गिरावट के साथ 104.54 पर आ गया.

वैश्विक तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड वायदा 1.20 फीसदी की तेजी के साथ 79.99 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर आ गया.

(With Agency Inputs)

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क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं?

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दुनिया भर में फैली अस्थिरता, आर्थिक विषमता और प्रतिकूलता के मध्य विगत एक दिसंबर को भारत ने जी 20 समूह के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाल लिया। जी 20 दुनिया के सफलतम देशों का संगठन है जिसके सदस्य देश-दुनिया की दो तिहाई आबादी के साथ वैश्विक सकल उत्पाद के 85% हिस्से, अंतरराष्ट्रीय व्यापार के 75% हिस्से और विकास में वैश्विक निवेश के 80% हिस्से पर काबिज हैं। ऐसे सशक्त और प्रभावी संगठन का अध्यक्ष बनना वैश्विक परिदृश्य पर भारत के एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभरने का एक अहम संकेत है।

भारत को जी 20 समूह के देशों के नेतृत्व की जिम्मेदारी ऐसे समय पर मिली है जब पूरी दुनिया सदी में एक बार आने वाली विघटनकारी महामारी, संघर्षों और बहुत सारी आर्थिक अनिश्चितता के बाद के प्रभावों से गुजर रही है। जिसकी वजह से अनेक देशों को उच्च मुद्रास्फीति, भोजन, उर्वरक और ऊर्जा की कमी, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता आदि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, परमाणु प्रसार आदि अन्य चुनौतियां वैश्विक अर्थव्यवस्था और समुदाय को लगातार अस्थिर कर रही हैं। कह सकते हैं भारत को काँटों का ताज मिला है।

चुनौती यदि बड़ी है तो अवसर भी उतना ही बड़ा है। आज सारा विश्व भारत की तरफ देख रहा है। जिस तरह भारत अपने साहसिक और दूरदर्शी नेतृत्व और विवेकपूर्ण नीतियों के बल पर कोविड-जन्य विपरीत परिस्थितियों पर पार पाने में सफल हुआ है, वह सारे विश्व को अचंभित करने वाला है। कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष के झटकों से निपटने में अपने प्रभावशाली प्रदर्शन के कारण, भारत एक अंधेरे और उदास वैश्विक परिदृश्य में आशा की किरण के रूप में उभरा है। जहाँ जी 20 में सम्मिलित विश्व की अनेक बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति, घटती उत्पादकता, बढ़ती बेरोजगारी और आने वाली मंदी की आशंका से जूझ रही हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है। स्टॉक मार्केट अपने उच्चतम स्तरों पर है। स्टार्ट-अप संस्कृति छोटे-छोटे शहरों में भी पाँव पसार रही है, चहुँ तरफ निवेश भारत में आ रहा है। विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार देश के पास है। दुनिया भर में फैले भारतीय उद्यमी और पेशेवर सफलता की नयी बुलंदियां छू रहे हैं। दुनिया हतप्रभ है, वो जानना चाहती है कि भारतीय नेतृत्व में ऐसा क्या जादू है कि इतनी प्रतिकूल परिस्थितियां भी भारत के बढ़ते कदमों को नहीं रोक पायी।

कोविड के समय में भारत ने न केवल अपने देश वासियों की चिंता की और उन्हें कोरोना मुक्त किया बल्कि वैक्सीन मैत्री के माध्यम से दुनिया के अनेक देशों को वैक्सीन प्रदान कर महामारी से बचाया। क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? यह भारत का विश्वरूप था जिसे पूरी दुनिया ने देखा और सराहा। 'वसुधैव कुटुम्बकम' की जिस अवधारणा को हम हमेशा से जीते आये हैं उसे भारत ने साकार कर दिखाया और न केवल आर्थिक और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत ने अप्रतिम सफलता दिखाई बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में नए प्रतिमान स्थापित कर दिए। जहाँ आज सारा विश्व अलग-अलग खेमों में बंटा हुआ दिखता है वहीं भारत एक ऐसा देश बन गया है जिसके या तो सभी दोस्त है फिर जो नहीं है वो बनना चाहते हैं। रूस और अमेरिका जैसे दो धुर विरोधी, दोनों ही भारत को अपना निकट का मित्र मानते हैं। वहीं इजराइल और अरब लीग के देश भले ही एक दूसरे के विरोधी हो, भारत के वे दोनों ही अच्छे दोस्त हैं। ऐसे भारत का चमत्कारी नेतृत्व आज जी 20 के शक्तिशाली समूह को मिला है। नि:स्संदेह न सिर्फ जी 20 के देश बल्कि सारा विश्व आज भारत की तरफ टकटकी लगाए देख रहा है।

भारत भी तत्परता के साथ अपने अनुभवों को दुनिया की बेहतरी के लिए साझा करना चाहता है। जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में भारत ने डिजिटल प्रौद्योगिकी के द्वारा अपने नागरिकों को वित्तीय सुविधाएँ पहुँचाने, सरकार और सिस्टम के साथ जुड़ाव को गहरा करने, भ्रष्टाचार को कम करने और सेवाओं और सुविधाओं के शीघ्र और पारदर्शी वितरण को बढ़ावा देने का कार्य किया है उसने भारत के नागरिकों को, विशेषतः गरीबों, वंचितों के जीवन को बदल दिया है और उन्नत किया है। भारत जी 20 की अध्यक्षता के दौरान, वैश्विक समुदाय के लाभ के लिए इस क्षेत्र में अपनी सफलता की कहानियों को साझा करना चाहेगा। साथ ही भारत जलवायु और विकास एजेंडे को एकीकृत करने, छोटे और सीमांत किसानों का समर्थन करने, खाद्य सुरक्षा और पोषण बढ़ाने, वैश्विक कौशल अंतराल को संबोधित करने जैसे महत्वपूर्ण हित के क्षेत्रों में परिणाम देने की आकांक्षा रखेगा। भारत जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण क्षेत्रों में अपनी पहल की पहुंच और क्षमता को भी बढ़ावा देना चाहेगा, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा जोखिम पहल क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? परियोजनाओं के द्वारा पहले ही किया जा रहा है।

पिछले माह अपने मासिक रेडियो संबोधन 'मन की बात' कार्यक्रम में पीएम ने देश को इस अवसर का उपयोग करने को कहा। उन्होंने कहा हमें वैश्विक भलाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जी 20 की अध्यक्षता हमारे लिए एक बड़े अवसर के रूप में आई है। हमें इस अवसर का पूरा उपयोग करना चाहिए और वैश्विक भलाई व विश्व कल्याण पर ध्यान देना चाहिए। चाहे शांति हो या एकता, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता हो या सतत विकास, भारत के पास चुनौतियों से संबंधित समाधान हैं। हमने एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य की जो थीम दी है, वह हमारी 'वसुधैव कुटुम्बकम' की प्रतिबद्धता को दर्शाता क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? है।

दरअसल हमारे पुरातन देश के इतिहास में यह एक बड़ा मुकाम है। दुनिया के 20 बड़े देशों के समूह जी 20 की अध्यक्षता का अर्थ है कि भारत अगले एक साल दुनिया की 80 फीसदी जीडीपी वाले और दुनिया की 60 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले देशों के समूह को राह दिखाएगा। यह भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी नेतृत्व क्षमता साबित करने का मौका तो होगा ही साथ ही दुनिया को अपनी संस्कृति से परिचित कराने का एक अवसर भी होगा।

अगले एक साल के दौरान देश में जी-20 देशों की 200 बैठकें होंगी, जो बड़े विचार पूर्वक देश के 50 विभिन्न शहरों में आयोजित की जाएँगी। बड़े-छोटे ये शहर देश की हर दिशा से चयनित होंगे। इस तरह भारत के पास दुनिया के सामने हमारी संस्कृति और धरोहर पेश करने का बड़ा मौका होगा। 'विश्व स्वरूप' भारत के इस अवतरण के पीछे हमारी हजारों वर्षों की यात्रा जुड़ी है, अनंत अनुभव जुड़े हैं। उन सबको भी दुनिया से साझा करने का यह एक अप्रतिम अवसर होगा.

क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं?

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दुनिया भर में फैली अस्थिरता, आर्थिक विषमता और प्रतिकूलता के मध्य विगत एक क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? दिसंबर को भारत ने जी 20 समूह के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाल लिया। जी 20 दुनिया के सफलतम देशों का संगठन है जिसके सदस्य देश-दुनिया की दो तिहाई आबादी के साथ वैश्विक सकल उत्पाद के 85% हिस्से, अंतरराष्ट्रीय व्यापार के 75% हिस्से और विकास में वैश्विक निवेश के 80% हिस्से पर काबिज हैं। ऐसे सशक्त और प्रभावी संगठन का अध्यक्ष बनना वैश्विक परिदृश्य पर भारत के एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभरने का एक अहम संकेत है।

भारत को जी 20 समूह के देशों के नेतृत्व की जिम्मेदारी ऐसे समय पर मिली है जब पूरी दुनिया सदी में एक बार आने वाली विघटनकारी महामारी, संघर्षों और बहुत सारी आर्थिक अनिश्चितता के बाद क्या सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी हैं? के प्रभावों से गुजर रही है। जिसकी वजह से अनेक देशों को उच्च मुद्रास्फीति, भोजन, उर्वरक और ऊर्जा की कमी, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता आदि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, परमाणु प्रसार आदि अन्य चुनौतियां वैश्विक अर्थव्यवस्था और समुदाय को लगातार अस्थिर कर रही हैं। कह सकते हैं भारत को काँटों का ताज मिला है।

चुनौती यदि बड़ी है तो अवसर भी उतना ही बड़ा है। आज सारा विश्व भारत की तरफ देख रहा है। जिस तरह भारत अपने साहसिक और दूरदर्शी नेतृत्व और विवेकपूर्ण नीतियों के बल पर कोविड-जन्य विपरीत परिस्थितियों पर पार पाने में सफल हुआ है, वह सारे विश्व को अचंभित करने वाला है। कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष के झटकों से निपटने में अपने प्रभावशाली प्रदर्शन के कारण, भारत एक अंधेरे और उदास वैश्विक परिदृश्य में आशा की किरण के रूप में उभरा है। जहाँ जी 20 में सम्मिलित विश्व की अनेक बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति, घटती उत्पादकता, बढ़ती बेरोजगारी और आने वाली मंदी की आशंका से जूझ रही हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है। स्टॉक मार्केट अपने उच्चतम स्तरों पर है। स्टार्ट-अप संस्कृति छोटे-छोटे शहरों में भी पाँव पसार रही है, चहुँ तरफ निवेश भारत में आ रहा है। विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार देश के पास है। दुनिया भर में फैले भारतीय उद्यमी और पेशेवर सफलता की नयी बुलंदियां छू रहे हैं। दुनिया हतप्रभ है, वो जानना चाहती है कि भारतीय नेतृत्व में ऐसा क्या जादू है कि इतनी प्रतिकूल परिस्थितियां भी भारत के बढ़ते कदमों को नहीं रोक पायी।

कोविड के समय में भारत ने न केवल अपने देश वासियों की चिंता की और उन्हें कोरोना मुक्त किया बल्कि वैक्सीन मैत्री के माध्यम से दुनिया के अनेक देशों को वैक्सीन प्रदान कर महामारी से बचाया। यह भारत का विश्वरूप था जिसे पूरी दुनिया ने देखा और सराहा। 'वसुधैव कुटुम्बकम' की जिस अवधारणा को हम हमेशा से जीते आये हैं उसे भारत ने साकार कर दिखाया और न केवल आर्थिक और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत ने अप्रतिम सफलता दिखाई बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में नए प्रतिमान स्थापित कर दिए। जहाँ आज सारा विश्व अलग-अलग खेमों में बंटा हुआ दिखता है वहीं भारत एक ऐसा देश बन गया है जिसके या तो सभी दोस्त है फिर जो नहीं है वो बनना चाहते हैं। रूस और अमेरिका जैसे दो धुर विरोधी, दोनों ही भारत को अपना निकट का मित्र मानते हैं। वहीं इजराइल और अरब लीग के देश भले ही एक दूसरे के विरोधी हो, भारत के वे दोनों ही अच्छे दोस्त हैं। ऐसे भारत का चमत्कारी नेतृत्व आज जी 20 के शक्तिशाली समूह को मिला है। नि:स्संदेह न सिर्फ जी 20 के देश बल्कि सारा विश्व आज भारत की तरफ टकटकी लगाए देख रहा है।

भारत भी तत्परता के साथ अपने अनुभवों को दुनिया की बेहतरी के लिए साझा करना चाहता है। जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में भारत ने डिजिटल प्रौद्योगिकी के द्वारा अपने नागरिकों को वित्तीय सुविधाएँ पहुँचाने, सरकार और सिस्टम के साथ जुड़ाव को गहरा करने, भ्रष्टाचार को कम करने और सेवाओं और सुविधाओं के शीघ्र और पारदर्शी वितरण को बढ़ावा देने का कार्य किया है उसने भारत के नागरिकों को, विशेषतः गरीबों, वंचितों के जीवन को बदल दिया है और उन्नत किया है। भारत जी 20 की अध्यक्षता के दौरान, वैश्विक समुदाय के लाभ के लिए इस क्षेत्र में अपनी सफलता की कहानियों को साझा करना चाहेगा। साथ ही भारत जलवायु और विकास एजेंडे को एकीकृत करने, छोटे और सीमांत किसानों का समर्थन करने, खाद्य सुरक्षा और पोषण बढ़ाने, वैश्विक कौशल अंतराल को संबोधित करने जैसे महत्वपूर्ण हित के क्षेत्रों में परिणाम देने की आकांक्षा रखेगा। भारत जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण क्षेत्रों में अपनी पहल की पहुंच और क्षमता को भी बढ़ावा देना चाहेगा, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा जोखिम पहल परियोजनाओं के द्वारा पहले ही किया जा रहा है।

पिछले माह अपने मासिक रेडियो संबोधन 'मन की बात' कार्यक्रम में पीएम ने देश को इस अवसर का उपयोग करने को कहा। उन्होंने कहा हमें वैश्विक भलाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जी 20 की अध्यक्षता हमारे लिए एक बड़े अवसर के रूप में आई है। हमें इस अवसर का पूरा उपयोग करना चाहिए और वैश्विक भलाई व विश्व कल्याण पर ध्यान देना चाहिए। चाहे शांति हो या एकता, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता हो या सतत विकास, भारत के पास चुनौतियों से संबंधित समाधान हैं। हमने एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य की जो थीम दी है, वह हमारी 'वसुधैव कुटुम्बकम' की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

दरअसल हमारे पुरातन देश के इतिहास में यह एक बड़ा मुकाम है। दुनिया के 20 बड़े देशों के समूह जी 20 की अध्यक्षता का अर्थ है कि भारत अगले एक साल दुनिया की 80 फीसदी जीडीपी वाले और दुनिया की 60 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले देशों के समूह को राह दिखाएगा। यह भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी नेतृत्व क्षमता साबित करने का मौका तो होगा ही साथ ही दुनिया को अपनी संस्कृति से परिचित कराने का एक अवसर भी होगा।

अगले एक साल के दौरान देश में जी-20 देशों की 200 बैठकें होंगी, जो बड़े विचार पूर्वक देश के 50 विभिन्न शहरों में आयोजित की जाएँगी। बड़े-छोटे ये शहर देश की हर दिशा से चयनित होंगे। इस तरह भारत के पास दुनिया के सामने हमारी संस्कृति और धरोहर पेश करने का बड़ा मौका होगा। 'विश्व स्वरूप' भारत के इस अवतरण के पीछे हमारी हजारों वर्षों की यात्रा जुड़ी है, अनंत अनुभव जुड़े हैं। उन सबको भी दुनिया से साझा करने का यह एक अप्रतिम अवसर होगा.

नोट टू सुसाइड: मेडिकल-इंजीनियरिंग के अलावा भी सफलता के कई विकल्प

कोटा। कोटा आत्महत्या रोकने के लिए छात्रों ने 'से नॉट टू सुसाइड' अभियान शुरू किया है। इस अभियान में मेडिकल और इंजीनियरिंग में फेल होने के बाद सफलता हासिल करने वाले युवाओं को शामिल किया गया है. ये युवा छात्र बताएंगे कि मेडिकल और इंजीनियरिंग ही सब कुछ नहीं है। इसके बाद भी कई ऐसे विकल्प हैं, जिनमें सुधार किया जा सकता है। ऐसे में पढ़ाई में तनाव लेने की जरूरत नहीं है। ऐसे कई व्यक्ति हुए हैं जो शुरुआत में असफल होने के बाद आज महत्वपूर्ण पदों पर हैं। संस्थापक अंशु महाराज ने बताया कि पहले भी इस तरह का अभियान चलाया गया था। अब एक ही दिन में तीन मौतों के बाद फिर से अभियान शुरू कर दिया गया है. इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए 2014 में यूपी से कोटा आया था। करीब दो साल तक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। फेल होने पर उन्हें बहुत दुख हुआ। पढ़ाई जारी रखी। आज यूनाइटेड बैंक में ग्रामीण विकास अधिकारी हैं।

प्रियश 2011 में कोटा मेडिकल की तैयारी करने आया था। डॉक्टरेट में चयन के लिए दिन-रात मेहनत की, लेकिन सफलता नहीं मिली। काफी पैसा भी खर्च किया गया है। परिजन नाखुश थे, तो कोटा में ही कारोबार शुरू कर दिया। कोटा में आज तीन रेस्टोरेंट हैं। सालाना 40 लाख का टर्नओवर है। अलवर की हीना 2015 में मेडिकल की पढ़ाई करने कोटा आई थी। दो साल पढ़ाई की। अच्छे अंक होने के बावजूद कॉलेज नहीं मिल सका। ऐसे में वो उदास हो गईं. तरह-तरह के विचार आने लगे। बाद में एलएलबी की। आज वे हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं।अंशु महाराज ने बताया कि उन्होंने अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान के लिए 500 वॉलेंटियर तैयार किए गए हैं। इसमें सोमवार से 100 वॉलंटियर सीधे छात्रावास में जाकर विद्यार्थियों से जुड़ेंगे। अंशु ने बताया कि शहर में 100 से अधिक वॉलंटियर्स सक्रिय रहेंगे, जिनका काम हॉस्टलों में जाकर छात्राओं से बातचीत करना होगा। समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेलकूद प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी। छात्रों को आश्वस्त किया जाएगा कि वे यहां अकेले नहीं हैं। एक समारोह भी आयोजित करेंगे, जिसमें कोटा के छात्रों को अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। इसमें मनोचिकित्सक भी शामिल होंगे।

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